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रफ़ी का एक सदाबहार नगमा--------------भाग-2

फिल्म-- हीर राँझा
गायक-- रफ़ी
गाना का बोल-- ये दुनिया ये महफ़िल

ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....

किसको सुनाऊ हाल दिल-ए-बेकरार का
बुझता हुआ चिराग हूँ अपने मजार का..
ए काश भूल जाऊ मगर भूलता नहीं...
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का....
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....

अपना पता मिले न खबर यार की मिले....
दुश्मन को भी ना ऐसी सजा प्यार की मिले...
उनको खुदा मिले है जिनको खुदा की है तलाश....
मुझको बस एक झलक मेरे दिलदार की मिले......
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....

सेहरा में आके भी मुझको ठिकाना ना मिला...
ग़म को भुलाने का कोई बहाना ना मिला....
दिल तरसे जिसमे प्यार को..क्या समझू उस संसार को...
एक जीती बाज़ी हार के मैं दुंदु बिचरे यार को....
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....

दूर निगाहों से अंशु बहता है कोई..
कैसे ना जाऊ मैं मुझको बुलाता है कोई.....
या टूटे दिल को जोर दो या सारे बंधन तोड़ दो...
ए पर्वत रास्ता दे मुझे..ए काटो दामन छोड़ दे..
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....

ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....
ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं....मेरे काम की नहीं....

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Comment by Ratnesh Raman Pathak on April 19, 2010 at 10:05pm
preetam jee kaha jata hai ki चावल जेतने पुराना होला ओतने महंगा होला आ कीमत भी होला isliye is geet ka bol aur madhur aawaj aaj bhi dil ko chhu lete hai.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 19, 2010 at 2:13pm
वाह भाई वाह ये गीत तो मुझे काफी पसंद है, जिस अंदाज मे रफ़ी साहब ने इस गीत को गया है, वो आँखों मे आंशु लाने के लिये काफी है ,धन्यबाद प्रीतम जी इस गीत को यहाँ पोस्ट करने के लिये,

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