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              चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां सुन्दर परियां रहती हों 

जहां निर्मल नदियाँ बहती हों 

जहां दिलों कि खिड़की खुली-खुली 

जहां सुगंध पवन में घुली- घुली  

जहां खुशियाँ  हंसती हो हरदम 

                      चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां दरख़्त खड़े हों बड़े-बड़े 

हर शाख पे झूले पड़े -पड़े 

जहां संस्कृतियों का वास हो 

जहां कुटिलता का ह्रास हो 

कोई ऐसा तरु उगाये हम 

                       चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां भ्रष्टाचार का नाम ना हो 

जहां बेईमानी का काम ना हो 

जहां तन- मन के कपडे उजलें हों 

जहां स्वस्थ अशआर की ग़ज़लें हों

कोई निर्धन हों ना कोई गम 

                        चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां भाईचारे की  खाद डले

जहां माटी से सोना निकले 

जहां श्रम का फल दिखाई दे 

जहां कर्म संगीत सुनाई दे 

आ ऐसी फसल उगाये हम 

                          चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

जहां अपराधो का डंक ना हों 

जहां राजा हों कोई रंक ना हों  

जहां पुष्प  खिले कांटें ना खिले 

जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले 

ऐसा गुलशन महकाएं  हम 

                            चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

              **********

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 9:28pm

नीलांश जी आपको कविता पसंद आई बहुत बहुत हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 9:27pm

अरुण कुमार अभिनव जी आपकी टिपण्णी की तहे दिल से आभारी हूँ कविता आपको पसंद आई मेरी लेखनी सार्थक हुई 

Comment by MAHIMA SHREE on May 16, 2012 at 9:26pm

आदरणीया राजेश दी . सुंदर चित्र के साथ सुंदर दुनिया में ले जाती रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 9:24pm

गणेश लोहानी जी   बहुत बहुत हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 9:23pm

डा. सूर्या बाली जी  बहुत बहुत हार्दिक आभार आपकी सकारात्मक शब्दों से मेरी लेखनी को बल मिला बहुत ख़ुशी हुई पढ़ कर पढने में थोडा देर हो गई बाहर गई थी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 9:20pm

संदीप कुमार पटेल जी बहुत बहुत हार्दिक आभार 

Comment by Nilansh on May 16, 2012 at 9:00pm

जहां दरख़्त खड़े हों बड़े-बड़े 

हर शाख पे झूले पड़े -पड़े 

जहां संस्कृतियों का वास हो 

जहां कुटिलता का ह्रास हो 

कोई ऐसा तरु उगाये हम 

 चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

..bahut hi acchi kavita rajesh ji ,mantramugdh karti aur uddhesyasahit 

Comment by Shayar Raj Bajpai on May 16, 2012 at 8:28pm

ज्यादा कुछ नहीं लिख पाएंगे क्योंकि शब्द भी होने चाहिए वर्णन के लिए.... शब्दों में अवर्णित कविता है आपकी.... बधाई स्वीकार करे मोहतरमा.....

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2012 at 3:57pm

जहां श्रम का फल दिखाई दे 

जहां कर्म संगीत सुनाई दे 

आ ऐसी फसल उगाये हम 

                          चल वहीँ पे नीड़ बनायें हम 

सुन्दर सार्थक सकारात्मक सोच की रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश जी ! आपकी कल्पना मूर्त roop le yahi kaamna ham sabki hai |

Comment by ganesh lohani on May 16, 2012 at 3:51pm

जमीं पर स्वर्ग की कल्पना | बहुत सुन्दर रचना आदरनीय राजेश कुमारी जी | निम्न पंक्तियों के लिए विशेष बधाई |

जहाँ अपराधो का डंक ना हों 

जहां राजा हों कोई रंक ना हों  

जहां पुष्प  खिले कांटें ना खिले 

जहां मीत मिले दुश्मन ना मिले 

ऐसा गुलशन महकाएं  हम 


 

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