(1)
कई दिनों से
सफ़ेद चादर के फंदे ने
गला घोंट रखा था
आज धूप से गले मिलकर
खुल के रोये चिनार
(2)
हाथी दांत की चूड़ियाँ
बाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में
(3)
तेरी इस ग़ज़ल के कुछ शब्दों से
लहू रिस रहा है
लगता है कहीं से बहुत बड़ी
चोट खाकर आये हैं
तभी तो दर्द से बरखे
यूँ फडफडा रहे हैं
(4)
आज मेरी छाँव में बैठ लो दोस्तों
कल तो टुकड़े- टुकड़े होकर
किसी शहर चला जाऊँगा
ढूँढना हो तो ढूँढ लेना
किसी के स्वागत कक्ष में
तुमको गोदी में बड़े प्यार से बिठाऊंगा
*****
Comment
अशोक कुमार रकतेला जी आपको मेरे ख़याल पसंद आये हार्दिक आभार
राजेश कुमारी जी
सादर,
हाथी दांत की चूड़ियाँ
बाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं, बधाई.
संदीप कुमार जी सराहना के लिए हार्दिक आभार
अविनाश बागडे जी आपकी बहुत आभारी हूँ कि मेरे ख़याल पसंद आये |
behad khoobsoorti ke saath likhi hain ye kshanikaayen
umda rachna ke liye aapko badhai rajesh kumari ji
हाथी दांत की चूड़ियाँ
बाजार में देखी तो ख़याल आया
कि कहीं कल इंसान
की अस्थियों के लाकेट
तो नहीं आ जायेंगे बाजार में...bahut umda Rajesh kumari mam.
बहुत बहुत हार्दिक आभार राज बाजपेई जी
आज मेरी छाँव में बैठ लो दोस्तों
कल तो टुकड़े- टुकड़े होकर
किसी शहर चला जाऊँगा........ Bahut khoob Mohatarma....
गणेश बागी जी हार्दिक आभार आपका |
सभी क्षणिकाएं अच्छी बन पड़ी है, हाथी दांत की चूड़ियाँ विशेष आकर्षित करती है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया |
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