ग़ालिब-ओ- मीर हो या फैज़-ओ-फ़राज़ हो
हर जगह शायरी का तख़्त-ओ-ताज हो
जब दवा हो जाए नाकाम दोस्तों
तब ग़ज़ल से ही गम का इलाज़ हो
Posted on November 23, 2012 at 12:31pm — 10 Comments
न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये
किस बात पे चर्चे हों जाएँ ,फिर कैसा फ़साना हो जाये
Posted on June 10, 2012 at 10:55am — 8 Comments
क्यूँ तेरा अब, तुझी पे इख्तियार नहीं?
कठपुतली बना, पर सोगवार नहीं ?
मेहनत पसीने की रोटियाँ तो तोड़
कि साथ देता ज़माना, हर बार नहीं
ज़मीर तो होगा ही दामन में तेरे
शोहरत न रहे, तू खतावार नही
वो छीन लेंगे तेरी आँखों का पानी
टिकती है खुदाई, कोई किरदार नहीं
खबरों में है पर दिलों में कहाँ
तू अपने ही खातिर, वफादार नहीं
Posted on May 19, 2012 at 11:00am — 13 Comments
स्याह रातों में चाँद का गिलास नहीं देख सकता
उखड़ी उखड़ी आवाज़ तेरी, बोझल सांस नहीं देख सकता
.
तेरे माथे पर कोई दोष न होगा कभी ,
तुझे मजबूर, बद -हवास नहीं देख सकता
.
हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा ,
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता
.
मेरी रूह में घुल गयी है मधु तेरी रहमत की
क्या हुआ कि रहूँ तनहा, तुझे आस पास नहीं देख सकता
.
हैं अजीब हालात, मगर तेरे कदम न रुकें
तुझे बिखरा हुआ सा, उजास…
Posted on May 12, 2012 at 3:30pm — 13 Comments
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें...
ग़ज़ल को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
janmdiwas ki hardik shubhkaamnaayein...
नीलांश भाई बहुत बहुत धन्यवाद।
नीलांश जी बहुत बहुत धन्यवाद आपकी दाद के लिए। आपको ग़ज़ल पसंद आई । मेरी मेहनत सार्थक हुई !