स्याह रातों में चाँद का गिलास नहीं देख सकता
उखड़ी उखड़ी आवाज़ तेरी, बोझल सांस नहीं देख सकता
.
तेरे माथे पर कोई दोष न होगा कभी ,
तुझे मजबूर, बद -हवास नहीं देख सकता
.
हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा ,
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता
.
मेरी रूह में घुल गयी है मधु तेरी रहमत की
क्या हुआ कि रहूँ तनहा, तुझे आस पास नहीं देख सकता
.
हैं अजीब हालात, मगर तेरे कदम न रुकें
तुझे बिखरा हुआ सा, उजास नहीं देख सकता
Comment
aapke sneh ka bahut aadar surya ji,main koshish karunga rachnaao me aur sudhaar karne ki
aapka shukriya
नीलांश जी सुंदर भाव समेटे हुए अच्छी कोशिश है। बस मिशरे थोड़ा छोटे बड़े हैं....अगर रचना को बहर में कर लें तो बहुत अच्छी ग़ज़ल होगी .....कोशिश करें । आपके पास फिक्र बहुत ऊंची है !! बधाई हो !
aapke sneh ka aabhaari hoon surendra ji
हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा ,
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता
.नीलांश जी बहुत अच्छी गजल ..सुन्दर भाव .प्रेम के रंग होते ही ऐसे हैं ...भ्रमर ५
मेरी रूह में घुल गयी है मधु तेरी रहमत की
क्या हुआ कि रहूँ तनहा, तुझे आस पास नहीं देख सकता
ji punah dhanyvaad
जी नीलांश जी, प्रस्तुत रचना काफिया रदीफ़ स्तर पर ठीक है, बहर पर ध्यान दे, बाकी सब मस्त मस्त :-)
ganesh ji aaapka bahut aabhaar ,
wazan ki jaankaari utni nahi hai ,
bas jaanta hoon ki bahr me rahna chahiye aur wazan me bhi aur khyaal hi use poorn ghazal banaate hain
yahan ghazal kaksha me main abhi sikh raha hoon
koshish karunga ise aur sanwaarne ki
aapka poonah aabhaar
apne comments dete rahiye
नीलांश जी सुन्दर ख्याल है , यह ग़ज़ल किस वजन पर है जरा बताना चाहेंगे |
हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा ,
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता
बहुत सुंदर लिखा अपने नीलांश जी
bahut aabhaari hoon sabhi badon ka
pradeep ji ,ajay ji,mahima ji aapke sneh ke liye aabhaar.
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