For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उदास नहीं देख सकता

स्याह रातों में चाँद का गिलास नहीं देख सकता
उखड़ी उखड़ी आवाज़ तेरी, बोझल सांस नहीं देख सकता
.
तेरे माथे पर कोई दोष न होगा कभी ,
तुझे मजबूर, बद -हवास नहीं देख सकता
.
हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा ,
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता
.
मेरी रूह में घुल गयी है मधु तेरी रहमत की
क्या हुआ कि रहूँ तनहा, तुझे आस पास नहीं देख सकता
.
हैं अजीब हालात, मगर तेरे कदम न रुकें
तुझे बिखरा हुआ सा, उजास नहीं देख सकता

Views: 975

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilansh on May 17, 2012 at 9:39pm

aapke sneh ka bahut aadar  surya ji,main koshish karunga rachnaao me aur sudhaar karne ki

aapka shukriya 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 12:18am

नीलांश जी सुंदर भाव समेटे हुए  अच्छी कोशिश है। बस मिशरे थोड़ा छोटे बड़े हैं....अगर रचना  को बहर में कर लें तो बहुत अच्छी ग़ज़ल होगी .....कोशिश करें । आपके पास फिक्र बहुत ऊंची है !! बधाई हो !

Comment by Nilansh on May 14, 2012 at 9:41pm

aapke sneh ka aabhaari hoon surendra ji

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 10:51pm

हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा , 

तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता 

.नीलांश जी बहुत अच्छी गजल ..सुन्दर भाव .प्रेम के  रंग होते ही ऐसे हैं ...भ्रमर ५ 

मेरी रूह में घुल गयी है मधु तेरी रहमत की 

क्या हुआ कि रहूँ तनहा, तुझे आस पास नहीं देख सकता 


Comment by Nilansh on May 13, 2012 at 9:36pm

ji punah dhanyvaad


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 13, 2012 at 9:27pm

जी नीलांश जी, प्रस्तुत रचना काफिया रदीफ़ स्तर पर ठीक है, बहर पर ध्यान दे, बाकी सब मस्त मस्त :-)

Comment by Nilansh on May 13, 2012 at 9:08pm

ganesh ji  aaapka bahut  aabhaar ,

wazan ki jaankaari utni nahi hai ,

bas jaanta hoon ki bahr me rahna chahiye aur wazan me bhi aur khyaal hi use poorn ghazal banaate hain

yahan ghazal kaksha me main abhi sikh raha hoon 

koshish karunga ise aur sanwaarne ki

aapka poonah aabhaar

apne comments dete rahiye


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 13, 2012 at 8:52pm

नीलांश जी सुन्दर ख्याल है , यह ग़ज़ल किस वजन पर है जरा बताना चाहेंगे | 

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2012 at 6:42pm

हाँ , तेरी रुसवाई तो फिर भी सह लूँगा , 
तुझे खुद से नाराज़, उदास नहीं देख सकता 

बहुत सुंदर लिखा अपने नीलांश जी 

Comment by Nilansh on May 13, 2012 at 5:34pm

bahut aabhaari hoon sabhi  badon ka

pradeep ji ,ajay ji,mahima ji aapke sneh ke liye aabhaar.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
5 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service