For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यूँ तेरा अब ,तुझी पे इख्तियार नहीं

क्यूँ तेरा अब, तुझी पे इख्तियार नहीं?
कठपुतली बना, पर सोगवार नहीं ?

मेहनत पसीने की रोटियाँ तो तोड़
कि साथ देता ज़माना, हर बार नहीं

ज़मीर तो होगा ही दामन में तेरे
शोहरत न रहे, तू खतावार नही

वो छीन लेंगे तेरी आँखों का पानी
टिकती है खुदाई, कोई किरदार नहीं

खबरों में है पर दिलों में कहाँ
तू अपने ही खातिर, वफादार नहीं

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilansh on September 9, 2012 at 8:34pm

आदरणीय अशोक जी, गणेश जी ,योगराज जी आपके स्नेह और परामर्शों का आदर करता हूँ

बहुत शुक्रिया कोशिश करता रहूँगा सार्थक लेखन का  

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2012 at 7:28pm

नीलांश जी, कहन में दम है, बधाई हो |

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 21, 2012 at 6:56pm

नीलांश जी
        सादर,  बहुत समझ तो नहीं है किन्तु गजल के सारे शेर अच्छे लगे. आपके भाव मुझ तक पहुंचे. बधाई.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2012 at 1:08pm

बहुत खूब नीलांश जी. डॉ बाली साहिब की बात पर गौर अवश्य करें.

Comment by Nilansh on May 20, 2012 at 11:35am

rekha ji aapke sneh ka bahut aabhaari hoon

koshish  karta rahunga

Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 10:49am

मेहनत पसीने की रोटियाँ तो तोड़ 
कि साथ देता ज़माना, हर बार नहीं 

Nilansh ji sundr bhaav,bahut bahut badhai

Comment by Nilansh on May 20, 2012 at 8:08am

pradeep ji,aapka bahut aabhhar ,margdarshan karte rahen

aapke sneh ka aabhaari hoon mahima ji,bahut shukriya

Comment by MAHIMA SHREE on May 19, 2012 at 9:39pm

क्यूँ तेरा अब, तुझी पे इख्तियार नहीं?
कठपुतली बना, पर सोगवार नहीं ?

वाह नीलांश जी .. आपने तो बिलकुल हिला दिया , या कहे सोते से जगा दिया .. धन्यवाद आपका

जबरदस्त प्रस्तुति ... बहुत -२ बधाई आपको

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 19, 2012 at 5:51pm
आदरणीय नीलांश  जी, सादर 

खबरों में है पर दिलों में कहाँ 
तू अपने ही खातिर, वफादार नहीं

शानदार शेर , गजल दिल को लुभा गयी 

थी दिल में जो तस्वीर वो सामने आ गयी 

बधाई 

Comment by Nilansh on May 19, 2012 at 2:28pm

ashish ji ,rajesh ji ,surya ji bahut aabhaari hoon sneh ka

surya ji aapka bahut dhanyavad ki aapne trutiyan bataayin

maine punah koshish ki hai

...............................................

क्यूँ तेरा , तुझी पे इख्तियार नहीं? 
कठपुतली बना,  सोगवार नहीं ? 

मेहनत पसीने की रोटियाँ  तोड़ ले 
कि साथ देगा ज़माना, हर बार नहीं 

दामन में होगा ही, तेरा  वो ज़मीर 
शोहरत न हो , तू खतावार नही 

वो छीन लेंगे तेरी आँखों का पानी 
खुदाई बस टिकेगी , किरदार नहीं 


खबरों में है पर दिलों में है कहाँ 
तू अपने ही खातिर, वफादार नहीं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,यह ग़ज़ल तरही ग़ज़ल के साथ ही हो गयी थी लेकिन एक ही रचना भेजने के नियम के चलते यहाँ…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। यह गजल भी बहुत सुंदर हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के भी शेर अत्यंत प्रभावी बन पड़े हैं. हार्दिक बधाइयाँ…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"साथियों से मिले सुझावों के मद्दे-नज़र ग़ज़ल में परिवर्तन किया है। कृपया देखिएगा।  बड़े अनोखे…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. अजय जी ...जिस्म और रूह के सम्बन्ध में रूह को किसलिए तैयार किया जाता है यह ज़रा सा फ़लसफ़ा…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"मुशायरे की ही भाँति अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा लगा। अन्य शेर भी शानदार हुए…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद और बधाइयाँ.  वैसे, कुछ मिसरों को लेकर…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"हार्दिक आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपकी और नीलेश जी की बातों का संज्ञान लेकर ग़ज़ल में सुधार का…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"ग़ज़ल पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार भाई नीलेश जी"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"अपने प्रेरक शब्दों से उत्साहवर्धन करने के लिए आभार आदरणीय सौरभ जी। आप ने न केवल समालोचनात्मक…"
yesterday
Jaihind Raipuri is now a member of Open Books Online
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service