सांस में सुर सनसनाना प्यार का
ज़िन्दगी है ताना बाना प्यार का
मौत से कह दूंगा, रुक जा दो घड़ी
आने वाला है ज़माना प्यार का
यों तो हर मौसम का अपना रंग है
पर लगे मौसम सुहाना प्यार का
उफ़ जवानी का ये आलम जानेमन
और उस पर उमड़ आना प्यार का
चीज है अनमोल, पर बाज़ार में
नहीं मिलेगा चार आना प्यार का
बैठे ठाले यों ही कुछ कुछ लिख दिया
ख़ुद-ब-ख़ुद बन बैठा गाना प्यार का
है मुकद्दरमन्द जिसको मिल गया
ज़िन्दगी में गुनगुनाना प्यार का
उस घड़ी मत रोकना "अलबेला" को
जब लबों पर हो तराना प्यार का
_______JAI HIND
Comment
सादर प्रणाम श्रीमान सौरभ पाण्डेय जी,
आपके माध्यम से मैं सर्वप्रथम तो सभी वरिष्ठ विद्वान मित्रों से यह विनम्र निवेदन करना चाहता हूँ कि कृपया मुझे केवल अलबेला या ज़्यादा से ज़्यादा अलबेला खत्री ही कहें, क्योंकि जिस प्रकार से आप प्रेम और लगाव के वशीभूत हो कर मुझ जैसे नौसिखिये को सम्मानजनक संबोधन से नवाज़ते हैं वो लगते बहुत अच्छे हैं पर मैं अभी उनके काबिल नहीं हूँ . अभी नया नया रंगरूट हूँ और आपकी महफ़िल में एक विद्यार्थी की तरह हाज़िर रहना चाहता हूँ .
मैं यहाँ सीखने आया हूँ इसलिए आप मेरी पीठ थपथपाने के बजाय मेरी खाल उधेड़ेंगे तो मेरा ज़्यादा फायदा होगा . जब भी आपको लगे कि मैं यहाँ गलत हूँ कृपया मुझे बताएं ताकि वही भूल दोबारा न हो.
आपके स्नेह के लिए कृतज्ञ हूँ.........सादर
हा हा हा हा ........सम्मान्य योगराज जी, आनन्द आ गया
हाय रे दाल वो भी मखनी ....उत्तर वाले हों या दखनी, सभी कहेंगे लाओ लाओ... हमें है चखनी, अपनी तो निकाल पड़ेगी भाई जी.......फिर गल्ले पर आप बैठ जाना मैं तो खाली पकाने का काम करूँगा ..हा हा हा
आपकी बातों का सादर अनुमोदन करता हूँ, आदरणीय योगराभाईजी.
विश्वास है, अलबेलाभाईजी हम सभी के परस्पर संवादों से अबतक वाकिफ़ हो चुके होंगे. आज की ही बात ली जाय. आत्मीयता, हास्य और संप्रेषणीयता का अद्भुत संगम दीखता है संवादों और टिप्पणियों में. आश्वस्ति है कि अलबेलाभाईजी अपने नाम के अनुरूप अपनी बात भी अलबेले ढंग से कहते हैं. और खूब कहते हैं
आदरणीय, आपके माध्यम से मैं उन्हें पुनः बधाई देता हूँ.
सादर
हुज़ूर बन्दा परवर, आप देखते जाएँ आप वो मिज़हिया ग़ज़ल कहने लगेंगे कि दुनिया हैरत में पड़ जाएगी. अगर दाल की जगह "दाल-मखनी" न हो जाये तो कहिएगा....
आदरणीय भाईजी श्री योगराज प्रभाकर
सादर नमन.
आपके शब्दों से बड़ा सन्तोष, सुकून एवं सम्बल मिला है साथ में एक भरोसा भी कि आप मुझे शायर बना के ही छोड़ेंगे . लेकिन चिन्ता हो रही कि यदि मैं ज़्यादा दिन यों ही शायरी के आलम में रह गया और आप जैसे विद्वानों के बीच रहने की लत पड़ गई तो मेरी उस हास्य-व्यंग्य की दुकान का क्या होगा जिससे घर चलता है . आखिर दाल रोटी का जुगाड़ तो वहीँ से होता है न .....हा हा हा हा
वाह वाह वाह अलबेला जी, क्या प्रवाहमई ग़ज़ल कही है, दिल-ओ-रूह को सुकून पहुंचाने वाली, मेरी दिली बधाई स्वीकार करें. एक शेअर आपकी ग़ज़ल के नाम.
और दुनिया में उसे दरकार क्या
पा गया जो आबो दाना प्यार का
आपकी दाद पा कर मन बाग़ बाग़ हो गया संजय मिश्रा 'हबीब' साहेब, ज़र्रानवाज़ी के लिए तहेदिल से शुक्रिया ........
आभार......शुक्रिया रेखा जी,.......
है मुकद्दरमन्द जिसको मिल गया
ज़िन्दगी में गुनगुनाना प्यार का
bahut badhiya gazal,Albela ji ,badhai
मौत से कह दूंगा रुक जा दो घड़ी,
आने वाला है ज़माना प्यार का....
बड़ी प्यारी से गजल... वाह! .
तरही मुशायरे में भी आपकी शानदार गजलें पढ़ कर बहुत आनंद आया था...
आपका सादर स्वागत और बधाईयाँ....
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