दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा बाबाजी
गुंडई ने है अमन को चाबा बाबाजी
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा बाबाजी
मैक्डोनाल्ड में रौनक बढती जाती है
उजड़ रहा पंजाबी ढाबा बाबाजी
मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं
काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी
देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे
दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी
कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो
लोग कह उठें शाबा शाबा बाबाजी
जय हिन्द !
Comment
शुक्रिया वीनस जी,
आपका शाबा शाबा पद्मश्री से कम नहीं
वाह...वाह अलबेला जी बढ़िया रचना । मज़ा आ गया !
शुक्रिया संदीप कुमार पटेल जी
बेहतरीन रचना सर जी क्या बात है वाह वाह जी ...............................बेहद सुन्दर विचारों से भरी ग़ज़ल के लिए आपको साधुवाद
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online