दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा बाबाजी
गुंडई  ने है  अमन को चाबा बाबाजी 
   
 काम से ज़्यादा संसद में अब होता है 
 हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा  बाबाजी 
 
 मैक्डोनाल्ड में रौनक बढती जाती है 
 उजड़ रहा पंजाबी ढाबा बाबाजी 
 
 मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं  
 काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी 
 
 देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे 
 दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी 
 
 कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो 
 लोग कह उठें  शाबा शाबा बाबाजी
जय हिन्द !
Comment
शुक्रिया वीनस जी,
 आपका शाबा शाबा पद्मश्री से कम नहीं
वाह...वाह अलबेला जी बढ़िया रचना । मज़ा आ गया !
शुक्रिया संदीप कुमार पटेल जी
बेहतरीन रचना सर जी क्या बात है वाह वाह जी ...............................बेहद सुन्दर विचारों से भरी ग़ज़ल के लिए आपको साधुवाद
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