तेज़ हवा और एक ही तीली बाबाजी
फिर भी हमने बीड़ी पी ली बाबाजी
घर की सादी छोड़ के बाहर मत ढूंढो
रंग-रंगीली, छैल-छबीली बाबाजी
रूप के रस में जो डूबा वो न उबरा
ये मदिरा है बहुत नशीली बाबाजी
नेताओं के मुख-मण्डल पर लाली है
अपनी आँखें गीली गीली बाबाजी
केवल पगड़ी नहीं, मुझे तो लगती है
पी.एम. की पतलून भी ढीली बाबाजी
कितना भी खींचो इसको, ना टूटेगी
महंगाई है चीज़ लचीली बाबाजी
जिसने सबको अमृत बांटा 'अलबेला'
लाश उसी की मिली है नीली बाबाजी
जय हिन्द !
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद अरुण कान्त शुक्ला जी,
आपकी बधाई सर आँखों पर
बहुत बहुत शुक्रिया जगदानन्द झा 'मनु' साहेब,
धन्यवाद
एक बार फिर आपकी भीनी भीनी सराहना के लिए झीनी झीनी कृतज्ञता राजेश कुमारी जी,
आपकी टिप्पणी से जोश दूना हो गया
बहुत शानदार गजल , बहुत-बहुत बधाई
बहुत बहुत शानदार प्रस्तुति अलबेला जी मजा आ गया पढ़ के बस कहिये धमाल ,कमाल
नेताओं के मुख-मण्डल पर लाली है
अपनी आँखें गीली गीली बाबाजी ,
शानदार ढंग से कही गयी बात .. बधाई .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई.
आपको पसन्द आई...ये मेरे लिए बहुत ही ख़ुशी की बात है
शुक्रिया इस सराहना और हौसलाअफज़ाई के लिए बन्धुवर आशीष यादव जी.........आभार
शुभ प्रभात डॉ सूर्य बाली 'सूरज' जी,
मुझ जैसे नये रंगरूट के लिए आपकी दाद का वही महत्व है जो पाँच रूपए के नोट पर गांधी जी के फोटो का है . सूरज अगर दीपक की लौ का बखान करे तो ये अद्भुत होता है.....
शुक्रिया ....धन्यवाद...आभार ...जय हिन्द
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