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लोग कह उठें शाबा शाबा बाबाजी

दहशत-वहशत, ख़ूनखराबा  बाबाजी

गुंडई  ने है  अमन को चाबा बाबाजी
 
काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा  बाबाजी

मैक्डोनाल्ड में रौनक बढती जाती है
उजड़ रहा पंजाबी ढाबा बाबाजी

मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं 
काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी

देश समूचा खा कर ही पिंड छोड़ेंगे
दिल्ली पर जिनका है ताबा बाबाजी

कवि हो तो 'अलबेला' ऐसा गीत लिखो
लोग कह उठें  शाबा शाबा बाबाजी

  जय हिन्द !

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Comment by Albela Khatri on June 8, 2012 at 8:18pm

आपकी सराहना  और सहमति के लिए  हार्दिक आभार  योगेश शिवहरे जी.......

Comment by yogesh shivhare on June 8, 2012 at 8:01pm

काम से ज़्यादा संसद में अब होता है
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा  बाबाजी

bilkul sach kaha apne ..yahi to ho raha hai

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 6:42pm

आदर्य योगराज प्रभाकर भाईजी,
यह सच है कि  आप कभी ग़ैर संजीदा  नहीं होते,  लेकिन ये भी उतना ही सच है कि मैं कभी  संजीदा नहीं होता ........फिर भी कमाल देखिये  मोहब्बत और भाईचारे का  कि  दोनों इक दूजे  को न केवल पसन्द करते हैं बल्कि  सम्मान भी देते हैं ........बहरहाल  आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत मायने रखती है
धन्यवाद  आपके  द्वारा मिलने  वाली शाब्दिक ऊर्जा का .


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 6, 2012 at 3:26pm

अलबेला भाई जी, विश्वास रखें मैं कभी भी गैर संजीदा टिप्पणी नहीं दिया करता. रचना अच्छी लगे या बुरी, जो कहता हूँ दिल से ही कहता हूँ. सादर.

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 12:28pm

सम्मान्य योगराज प्रभाकर जी,

मेरे लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है कि मेरी तुकबन्दियाँ आपको  पसन्द आ रही हैं . यदि आप मन से कह रहे हैं  तो मेरे लिए सन्तोष की बात है और  यदि मेरा मन रखने के लिए कह रहे हैं  तो यह स्नेह  सदा बनाए रखिये.............

सादर


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 6, 2012 at 11:56am

वाह वाह वाह !!!! एक एक बंद सच्चाई बयां कर रहा है, पढ़ कर मन आनंदित हो उठा. अलबेला भाई जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by Albela Khatri on June 6, 2012 at 8:02am

आपका हार्दिक धन्यवाद  आशीष यादव जी......

Comment by आशीष यादव on June 6, 2012 at 7:37am
वाह वाह है बाबा जी।
मजेदार प्रस्तुति। आप की रचना का ढँग ही निराला है
Comment by Albela Khatri on June 5, 2012 at 11:31pm

सौरभ पाण्डेय जी,
धन्य कर दिया आपने..........दिल खोल कर दाद दी.......
ख़ून बढ़ गया .........आभारी हूँ

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 5, 2012 at 11:21pm

मन मधुबन के भीतर सारे तीरथ हैं
काशी-वाशी , क़ाबा-वाबा बाबाजी.. 

वाह-वाह ! इस अंदाज़ को मेरा सलाम.  आपकी शान को नज़्र -

अलबेला तो अलबेला है, कह देगा
हर हिस्से का हाबा-काबा बाबाजी.. . 

 

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