एक बड़ा आदमी अभी बोला कि वो माँगने कू नहीं गया था | उसे तो महामहिम ने अपने आप दे दिया , तो वो ले लिया | वो एकदम ई सच्ची बोला | क्यूं , इस वास्ते कि बड़ा आदमी छोटा चीज कभी नईं मांगता | बड़ा चीज भी वो एसीच्च नईं मांगता | बड़ा आदमी का माँगने का कला भी बड़ा ई अलग होता | अपुन जैसा मिडिल क्लास मांगेगा तो बोलेगा कि मिल जाएगा तो बड़ा मेहरबानी होगा , अक्खा लाईफ ओबलाईज रहेगा | थोड़ा और नीचे जायेंगा , बोले तो एकदम फटीचर क्लास में तो वो बोलेगा कि माईं बाप अपुन का लाईफ एकदम खलास है , नईं मिलेंगा तो बाल बच्चा बी मर जायेंगा | बोले तो , माँगने की स्टाईल का आदमी की क्लास के साथ एकदम डायरेक्ट रिलेशन होता है | बड़ा आदमी को मांगना होगा तो वो बोलेगा कि देना तो सरकार का काम है , मिलेंगा तो ठीक , नईं मिलेंगा तो ठीक | पर , मिलेंगा तो बड़ी खुशी होगी | बस देने वाला , चाए वो सरकार हो या कोई और एकदम समझ जाता है कि बड़ा आदमी को वो चीज मांगता है और फिर सब उसे वो देने के वास्ते भिड जाते हैं | वैसे बड़ा आदमी का सर्किल बी बड़ा होता है , फिलिम में बी , पोलिटिक्स में बी , स्पोर्ट्स में बी , सोसल में बी | ये सर्किल का लोग एक दूसरे को दिलाने के वास्ते एक दूसरे की मांग रखता रहता है | तो बड़ा आदमी की माँगने की कला एकदम डिफरेंट होता है |
वैसे बड़ा आदमी एकदम सच्ची बोला | कायकू , कि वो जो मिला , उसे माँगने के वास्ते नईं गया था | माँगा तो वो और बी बड़ी चीज था , बोले तो भारत रत्न | बोला था मिलेंगा तो अच्छा लगेंगा | जैसे हमको अच्छा लगा था , जब वो अपना सौवां सेंचुरी मारा था | हमसे लोग बोला कि वो अक्खा दुनिया में खेल कर आया , पर बंगला देश के खिलाफ मारा | हम बोला सेंचुरी , सेंचुरी होता है | वो खाली ग्राउंड में भी मारा होता तो हमको अच्छा लगता | बोले तो पंखा लोग ऐसीएच्च होता है | उनको बस अपने हीरो के वास्ते कोई बोले तो बहुत ई बुरा लगता है | बड़े लोग का पंखा सब जगह लटकता | विधान सभा में बी लटकता | उधर से बी सिफारिश | वैसे अब बड़ा आदमी इतना तो समझता है कि राज्य सभा में उसकू मंडित ई इस वास्ते किया है कि उसका बड़ा मांग का रास्ता साफ़ हो जाए | पर , वो बोला कि उसने माँगा नईं था | वो पुरानी सब बातों को भूल गया | वो कार के वास्ते कस्टम ड्यूटी माफ करना माँगा था | फिर गरीबों के वास्ते रखी गई जमीं अपने वास्ते माँगा था | फिर इनकम टेक्स बचाने के वास्ते किसान बनना माँगा था | अबी नवां मकान बनाया तो बिना टेक्स दिए रहना शुरू किया | बोले तो ये सब भूलने का ही था , इस वास्ते कि ये सब बड़ा आदमी बनने के पेले का है | बड़ा आदमी का ये माँगने का कला होता | माँगने के बाद भूल जाता | मिलता तो बी भूल जाता और न मिलता तो बी भूल जाता | मिल जाएगा तो बड़ा मेहरबानी होगा , अक्खा लाईफ ओबलाईज रहेगा और माईं बाप अपुन का लाईफ एकदम खलास है , नईं मिलेंगा तो बाल बच्चा बी मर जायेंगा , ये मिडिल क्लास और फटीचर क्लास का रोना है | बड़ा आदमी आज माँगा , अबी भूल गया | आज मिला , अबी भूल गया | कायकू , इस वास्ते भूल गया कि कल उसको फिर कुछ नया माँगने का है | बड़े आदमी से बड़ा मंगता और कोई नईं होता |
अरुण कान्त शुक्ला
Comment
आदरणीय डा, साहब , हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
बड़े आदमी से बड़ा मंगता और कोई नईं होता...........बिलकुल सही कहा अरुण कान्त जी आपने ! बहुत सटीक राजनैतिक व्यंग्य ॥बहुत धीरे से ज़ोर का झटका देता हुआ ! आपको बहुत बहुत बधाई !!
सम्मान्य अरुण कान्त जी,
आपका व्यंग्य सचमुच भीतर तक भेदता है........पुनः बधाई
धन्यवाद भावेश भाई ...
खत्री जी , सादर , मैं तो आपकी कविताओं का पंखा हो गया हूँ | आपको व्यंग पसंद आया तो समझ लीजिए , अब कम से कम आज तो ए सी रहूँगा | आभार |
बहुत बहुत धन्यवाद भाई उमाशंकर जी |
आदरणीय कुशवाहा जी , प्रेम के लिए आभारी हूँ | मुझे तो इस साईट पर आदरणीय शाही जी लाये थे | पर, अब वे नजर नहीं आते हैं |
आदरणीय गणेश जी , आपका कथन सही है . जीवन में कुछ ऐसा हुआ कि मैं करीब चार दशक पहले याने लगभग बाईस तेईस की उम्र में ट्रेड यूनियन लाइन से जुड़ गया और सारी मेहनत याने लेखन की उधर राजनीतिक और आर्थिक लेखों में लग गई | ह्रदय से तो साहित्य से जुड़ाव था , पर सिर्फ पढ़ना और वह भी सीमित में रह गया | वह काम अब भी चालू है , पर अब आप लोगों के सानिध्य में मन के भावों को बिना कर्कश हुए व्यक्त करने की सुविधा का लाभ लेने की चेष्टा कर रहा हूँ | आशीर्वाद बना रहेगा तो वांछित सुधार भी अवश्य होंगे , इसका पूरा भरोसा अपने ऊपर है | आपका आभार | आशीर्वाद बनाये रखियेगा |
आदरणीय शुक्ल जी, सादर
सत्य को हास्य में , वाह,
मजेदार व्यंग रचना
अरुण कान्त जी बधाई
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