For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक अर्थशास्त्रीय कविता, जीडीपी की माया-

जीडीपी से नौकरी,
ये अर्थशास्त्र कभी समझ न आया,
क्यों उगलते हैं कारखाने काला धुंआ,
जीडीपी ने कभी नहीं बताया,

सोचो ज़रा आसमान में,
सुराख किसने है बनाया,
क्यों झुलसाती है सूरज की किरणे इतना,
जीडीपी ने कभी है बताया,

सिगरेट छोड़ने से बचेगा पैसा,
पर, क्या, कोई अमीर बन पाया,
फिजूल खर्ची खूब करो,
पर, सोचो, क्या भूखे को निवाला पहुंचाया,

नून,तेल,हल्दी बेचने
क्यों बुलाते हो वालमार्ट को,
ऐसे ही बना था देश गुलाम,
क्या जीडीपी ने तुम्हें बताया,

खूब सजा सवांरकर रुपये को तुमने,
पौंड, यूरो और डॉलर के बगल बिठाया,
कभी ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप तरसे थे,
जिसके लिए, उसी को उन्होंने लतियाया,

याद रखो, इतिहास हम ही लिखते हैं,
तब तुम्हें सिंहासन मिलते हैं,
जम्हूरियत की कसम, हम न होंगे हम,
यदि तुम्हें इतिहास के कूड़ेदान में न फिकवाया,

जितनी बढ़ी तुम्हारी जीडीपी,
उतनी कभी न बढ़ी हमारी मजूरी,
हमारी मेहनत, खाते तुम हो,
बस है यही जीडीपी की माया,

Views: 596

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 14, 2012 at 4:13pm

इस रचना के लिये आदरणीय अरुणजी को मेरी सादर बधाइयाँ.

नून,तेल,हल्दी बेचने
क्यों बुलाते हो वालमार्ट को,
ऐसे ही बना था देश गुलाम,
क्या जीडीपी ने तुम्हें बताया,

इतनी स्पष्टता के पश्चात अब बचता ही क्या है.. .  

अर्थशास्त्रीय शब्दावलियों में बहुत अच्छी कोशिश के लिये पुनः धन्यवाद.

 

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on June 14, 2012 at 3:30pm

आप सभी महानुभावों का मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आभारी हूँ |

Comment by Albela Khatri on June 14, 2012 at 1:05pm

आदरणीय  अरुण कान्त  शुक्ल जी,
बहुत ही स्वधे हुए अंदाज़ में आपने सच बयान कर दिया
आपको और आपके लेखन को सलाम !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 14, 2012 at 11:15am

जितनी बढ़ी तुम्हारी जीडीपी,
उतनी कभी न बढ़ी हमारी मजूरी,
हमारी मेहनत, खाते तुम हो,
बस है यही जीडीपी की माया, 

आदरणीय अरुण कान्त जी, सादर अभिवादन 

बहुत ही सुन्दर तरीके से सत्यता का बखान किया . बधाई 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 13, 2012 at 11:24pm
आदरणीय अरुण सर, बहुत सुन्दरता से आपने बहुत कुछ कह दिया। बधाई।
Comment by Bishwajit yadav on June 13, 2012 at 10:39pm
प्रणाम अरुण जी
समय का पहिया को पकड कर आपने बहुत सुन्दर तरिके से रचा है बधाई हो
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 13, 2012 at 9:57pm

अरुण जी सादर नमस्कार ! बिलकुल सही फरमाया है आपने इस कविता में। अच्छा विश्लेषण देश की स्थिति और जीडीपी का। बहुत उम्दा ! बधाई हो !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service