हमें आजादी चाहिये --
चाहिये ,चाहिये , चाहिये ,
हमें आजादी चाहिये ,
तुम्हारे गम से , तुम्हारी खुशी से ,
तुम्हारे ऐश से , तुम्हारे आराम से ,
तुम्हारे भोग से , तुम्हारे उपभोग से ,
तुम्हारे हुक्म से , तुम्हारे हुक्मउदूली से ,
तुम्हारे न्याय से , तुम्हारे अन्याय से ,
तुम्हारे शोषण से , तुम्हारी दया से ,
तुम्हारी नीति से , तुम्हारी अनीति से ,
तुमसे , तुम्हारी छाया से ,
तुमसे , तुम्हारी चाकरी से ,
तुमसे , तुम्हारे प्रेम से ,
तुमसे , तुम्हारी नफ़रत से ,
चाहिये , चाहिये , चाहिये ,
हमें आजादी चाहिये ,
तुम्हारी हर बात से आजादी चाहिये ,
तुम एक प्रतिशत भी नहीं ,
हम निन्यानवे प्रतिशत हैं ,
तुम वतनखोरों के चंगुल से ,
मुल्क को आजादी चाहिये ,
क्योंकि हम मुल्क हैं ,
है वतन मुल्क हमारा ,
मुल्क को भी बेच कर मुनाफ़ा कमाने वालो ,
दुनिया में नहीं कोई वतन तुम्हारा ,
तुमसे चाहिये ,
चाहिये , चाहिये , चाहिये ,
हमें आजादी चाहिये ,
हमें आजादी चाहिये ,
Comment
अरुण जी आपने इस रचना के माध्यम से आम आदमी के मनोभावों और व्यथा को बखूबी प्रस्तुत किया है| आपको हार्दिक बधाई !
ham panchi ek daal ke udte firte basayen apna jahan. badhai. aadarniy mahodaya ji, saadar abhivadan ke saath.
भाई अरुणकांत जी, इस तेवर को सम्भाल कर रखियेगा. अस्सी के दशक की लीकतोड़ू कविताई याद आ गयी.
बधाई.
आदरणीय अरुण कान्त जी....नमस्कार,
श्रद्धेय सर,
इसी आज़ादी के लिए तो मुल्क आज तक तड़प रहा है| कविता की श़क्ल में आपने हर आम नागरिक के मनोभावों और व्यथा को बखूबी प्रस्तुत किया है| हार्दिक बधाई आपको,
आदरणीय , प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद . आशीर्वाद बना रहे .
तेवर कड़े हैं, रचना एक अलग कलेवर के साथ प्रस्तुत है, इस अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण जी |
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