कितना झूठा, कितना साचा बाबाजी
हमने सब का चेहरा बांचा बाबाजी
अग्निपथ टू देख के दर्शक चौंक उठे
विजय से ज़्यादा हॉट है कांचा बाबाजी
जुहू तट पर अपनी अपनी आयटम संग
खोज रहे सब कोना- खांचा बाबाजी
सीधे सच्चे बन्दे जिसमें ढलते थे
टूट गया है क्या वह सांचा बाबाजी
महाराष्ट्र में रह कर मैं भी सीख गया
तुमचा, आमचा, यांचा, त्यांचा बाबाजी
झंडों में बदलाव का कोई लाभ नहीं
बदलना होगा पूरा ढांचा बाबाजी
चोर होगया नौ दो ग्यारह और पुलिस
करती रह गई तीया-पांचा बाबाजी
अवगुण औरों में तो ढूंढे "अलबेला"
लेकिन ख़ुद को कभी न जांचा बाबाजी
जय हिन्द !
Comment
आभारी हूँ आपकी पसन्द और सहमति के लिए.........
धन्यवाद
शुक्रिया
शुक्रिया अरुण कान्त शुक्ला जी......
अवगुण औरों में तो ढूंढे "अलबेला"
लेकिन ख़ुद को कभी न जांचा बाबाजी वाह ..
झंडों में बदलाव का कोई लाभ नहीं
बदलना होगा पूरा ढांचा बाबाजी
सहमत.
धन्यवाद भाई कुमार गौरव जी,
शुक्रिया
बहुत अच्छी रचना अलबेला जी....आपके हास्य का तो दीवाना मैं पहले से ही हूँ....अच्छा लिखने के लिए बधाई...
हास्य के इस कुशल चितेरे पर हमें नाज है|
अलबेला नहीं ये हम सब के सर में ताज है||
याने हिंदुस्तान को नाज है हुजुर
आपके स्नेहसिक्त आशीर्वाद ने मनोबल बढ़ा दिया आदरणीय उमाशंकर मिश्रा जी,
आभारी हूँ...........परन्तु क्षमा करना खंड-काव्य में मेरी कोई रुचि नहीं है......मैं तो अखण्ड-काव्य का प्रयास कर रहा हूँ.......हा हा हा हा
रही बात पगड़ी की तो ये फोटो उस समय का है जब मैंने सोनी टी वी पर कॉमेडी का बादशाह में विजय प्राप्त करके ख़िताब के रूप में ये पगड़ी हासिल की थी . आपकी आशीष से ऐसी कई पगड़ियाँ पाने का सौभाग्य प्रभु ने दिया
आपकी सराहना और आशंसा सर आँखों पर.......स्नेह बनाए रखिये
सादर
कितना झूठा, कितना साचा बाबाजी
हमने सब का चेहरा बांचा बाबाजी
लगे रहो भाई अलबेला जी धीरे धीरे एक खंड काव्य की
ओर अग्रसर हो रहे हो......... "बाबा जी"
पगड़ी सर पर खूब जँच रही है बाबाजी
सूटिंग हो रही, कोई रस्ते का ढाबा जी ...सब कुछ बढ़िया है
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