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ग़ज़ल:माँ के आँचल सा

ग़ज़ल

माँ के आँचल सा खिलता है गुलमोहर,
मुझसे अपनों सा मिलता है गुलमोहर.

तुम अपने रेखा चित्रों में रंग भरो,
मेरे सपनों में हिलता है गुलमोहर.

खुशबू वाले चादर तकिये और गिलाफ ,
बूढ़ी आँखों से सिलता है गुलमोहर.

चौड़ी होती सड़कों से खुश होते हम,
बची हुई साँसे गिनता है गुलमोहर.

भक्काटा* के शोर में छोटे बच्चे सा ,
अपने मांझे को ढिलता है गुलमोहर .

चटख चाँदनी जब करती सोलह सिंगार ,
झोली में तारे बिनता है गुलमोहर.

*पतंग काटने का शोर

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 10:14am
"आभार "आपने पसंद किया .बागी जी कई बार ये की बोर्ड मन की बात कहता है पर अपनी वर्तनी के साथ .
Comment by Abhinav Arun on October 9, 2010 at 8:42am
बागी जी आभार ! अपने पसंद किया .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2010 at 9:17pm
भक्काटा* के शोर में छोटे बच्चे सा ,
अपने मांझे को ढिलता है गुलमोहर .

बच्चपन की ढेर सारी यादें आपने ताजा कर दिया ,अच्छी ग़ज़ल अरुण भाई , बधाई ,

कृपया ध्यान दे...

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