बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस
चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास
सात दीप और सात समुन्दर
सुन्दर कृति जल थल नभ पर
सात सुरों से संगीत बजता
पंचम पे पा सप्तम नी सजता
पंचम से गीत जब सजता
सप्तम बिना कंठ नहीं रुचता
पंचम सप्तम जब मिल जाते
गीत मनोहर सुन्दर भाते
जीवन का सुन्दर आधार
पंचम सप्तम का युगल संसार
तत्व समझते मुनिवर विज्ञानी
श्रष्टि जीवन शून्य बिन पानी
जल बिन जीवन मीन बिन पानी
पानी जीवन पर्याय बना है
बिन पानी हाहाकार मचा है
कट रहे नित प्रति वन औ उपवन
बिगड़ रहा सम्प्रति प्रकति संतुलन
ये व्यथा तुम अपनी न मानो
संकट जल विश्व का मानो
करो उपाय बच जाए वारी
नहीं तो कर लो युद्ध की तैयारी
Comment
धन्यवाद आदरणीय संदीप जी, सादर
धन्यवाद आदरणीय योगी जी, सादर
धन्यवाद आदरणीय अरुण श्रीवास्तव जी, सादर
kya sundarta se chitran kiya hai jal sankat kaa sir ji .........badhai aapko
कट रहे नित प्रति वन औ उपवन
बिगड़ रहा सम्प्रति प्रकति संतुलन
ये व्यथा तुम अपनी न मानो
संकट जल विश्व का मानो
करो उपाय बच जाए वारी
नहीं तो कर लो युद्ध की तैयारी
आदरणीय श्री प्रदीप कुशवाहा जी , सादर नमस्कार ! पानी के महत्व को समझाती सुन्दर रचना देने के लिए बहुत बहुत आभार ! रचना पसंद आई !
//रहिमन पानी राखिए बीन पानी सब सून // पानी के सम्बन्ध में ये भी कहा जा सकता है अब तो !
लेकिन आपने जो लिखा --
बैठा प्रभु मेरे समक्ष तिलक लगे निज आस
चन्दन मैं कैसे घिसूँ नहीं जो पानी पास----- क्या खूब लिखा ! आभाव का भी चित्रण इतनी सुंदरता से ! वाह !
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