ब्रेकिंग समाचार
भैंस ने दूधिये कों मारी लात
दूध देने से किया इनकार
भ्रस्टाचार अब सहन नही
भैंस संघ का पलट वार
भैंस बोली सुनो ओ दूधिये
भ्रष्टाचार से तेरा गहरा नाता
देती मैं तुझको दूध खालिस
तू जी भर उसमे पानी मिलाता
चकित दूधिया पलट कर बोला
ये तों मेरा जन्म सिद्ध अधिकार
जानो वंशागत तेरी मेरी गति
सुन दूध देना तेरा है संस्कार
खालिस दूध कोई हजम न कर पाए
पी भी गया तों शीघ्र डाक्टर बुलवाए
दूधिया बोला सुन तू काली…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 26, 2016 at 12:00pm — 2 Comments
कायर ( कहानी )
-------
रक्त दान -महा दान
--------------------
बढ़ते वजन से परेशान हैं, कैंसर के मरीज को देख -सुन कर भय होता है कि कहीं ये रोग आप को भी न लग जाए. हृदय रोग और हृदय आघात की संभावना कभी भी।
आप इन जोखिमों को कम कर सकते हैं यदि आप १८ से ६५ वर्ष की आयु के स्वस्थ वयस्क हैं। बस आपको करना है नियमित रक्त दान.
४५ कि.ग्राम से अधिक वजन वाले लोग तीन माह के अंतराल पर रक्त दान कर सकते हैं।
स्वेक्षिक रक्त दान से प्राप्त रक्त ही सबसे ज्यादा सुरक्षित रक्त होता है।…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 5, 2015 at 4:54pm — 4 Comments
कविता (हास्य)
------------------
तत्व ज्ञान -न रहो अनजान
----------------------------
बीबी संग जब जाय बाजार
हथ बंधन बढ़िया है हथियार
चलो बीच सड़क दायें न बाएं
पिघलो नही लाख वो चिल्लाएं
बीबी के आगे किसकी चलती
बाहों में वो नागिन सी पलती
मियां होशियार अपने को माने
तब घोटाले में भिजवाती थाने
मानो बात तुम देखो गाइड
वहीदा ने जब मारी साइड
देती ज्ञान मेरा नाम जोकर
न रही वो कभी किसी की होकर
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 1, 2015 at 9:30pm — No Comments
सूरज बोला रात से, आना नदिया पास।
घूँघट ओढ़े मैं मिलूँ , मिल खेलेंगे रास । ।
गोद निशा रवि आ गया , सोया घुटने मोड़ ।
चन्दा भी अब चल पड़ा , तारा चादर ओढ़ । ।
पीड़ा वो ही जानता , खाए जिसने घाव ।
पाटन दृग रिसत रहे ,कोय न समझा भाव । ।
विरह मिलन दो पाट हैं, जानत हैं सब कोय ।
सबहि खुशी गम सम रहे, दुःख काहे को होय। ।
नदिया धीरे बह रही ; पुरवइया का जोर ।
चाँद ठिठोली कर रहा , चला क्षितिज जिस ओर । ।
बदरा घूँघट…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 23, 2015 at 8:00pm — 4 Comments
बंधन
------
डाक्टर श्रीवास्तव की शुरू से आदत रही कि वे खुद और उनका स्टाफ समय पर अस्पताल पहुँचे। ज्यादातर वे समय से पहले अस्पताल पहुँच जाते ताकि अन्य राजकीय औपचारिकताओं के निर्वहन में खर्च होने वाले समय की प्रतिपूर्ति की जा सके और अधिक से अधिक मरीज देखे जा सकें। अपने सरल स्वभाव और मानवीय संवेदनाओं में अग्रणी होने के नाते क्षेत्र में बहुत लोंक प्रिय थे। मरीजों की भीड़ लगी थी और डाक्टर साहब तल्लीन थे सेवा भाव में। तभी मंत्री जी का आगमन हुआ। मंत्री का रूतबा और दबदबा दोनों ही कुछ ज्यदा…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 16, 2015 at 6:00pm — 6 Comments
तलाश
-------
निकल पड़ा हूँ
रोज की तरह आज भी
तलाश में ?
रोटी की
गोल हो , पतली या मोटी
जली काली , सफ़ेद
क्या फर्क
स्वाद तों एक ही होगा
कैसे ढूंढ लेते हो
अंतर
पांच सितारा होटल के नीचे पड़े
बजबजाते कूड़े में पडी
और
सुखिया के चूल्हे में सिंकी
सोंधी गंध वाली रोटी में
तुम्हें पता है ?
भूख कैसी होती है ?
मैं जानता हूँ।
मौलिक और अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 16, 2015 at 11:45am — 4 Comments
कवि
----------------
आत्मावलोकन
-----------------
सभागार
खचा खच था भरा
कुछ सहमा सा
कुछ डरा डरा
खड़ा मैं किनारे धरे मौन
उसने
पूछा परिचय
मैं हूँ कौन ?
सकपकाया थर्राया
फिर तोडा मौन
तुम कौन ?
कभी अपने को जाना
नही समझोगे
व्यर्थ समझाना
मैं कवि हूँ अदना सा
नही हूँ डॉन
हकीकत
---------
भीतर घुसा
ढाढ़स कुछ पाया
अंधियारे में कुछ
समझ न आवा…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2015 at 5:07pm — 4 Comments
कवि सम्मेलन
---------------
ट्रिन-ट्रिन
''हेलो '' लेखक मंडी
''दो दर्जन कवि , दोपहर ११ बजे , राम नाथ हाल, बेहाल मंडी भेज दीजिए''
''दहाड़ी कितनी ?
फिर दिमाग खराब हो गया तुम्हारा , दूसरे जिले से मंगवा लूँ ?मारे -मारे घूम रहे हैं। न इन्हें कोई सुनता , न छापता और न ही पढता।
'' फिर भी , कुछ तों देना ही होगा ''
'' २ टाइम चाय, बिस्कुट., ''
''बस, और कुछ नही भूखे मर जायेंगे बेचारे ''
''अभी कौन जिन्दा है ''
''कुछ तों बढाइये , बाल बच्चे दार…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 12, 2015 at 12:30pm — No Comments
शाम
स्वागतम
----------
स्वागत तेरा शाम सदा
श्याम सी सदा शाम हो ,
श्वेत श्याम उन यादों की
हर पल सुनहरी शाम हो
चाहत
--------
दूर होते हम तभी ,
भोर की जब बांग हो .
पास लाती चाहत हमे
नित मिलन की शाम हो
.
जिंदगी
------
जिंदगी तू सुबह भी है
जिंदगी तू शाम भी है
बोझिल कभी तू दर्द से
देती कभी आराम भी है
.
हसरत
---------
हाथ थामे चलते रहें
हसरत मेरी…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 9, 2015 at 4:30pm — 2 Comments
गुरु लघु और लघु गुरु, आपस में है मेल
चूक हुई तों समझिये, बिगड़े सारा खेल
खीरे सा मत होइये , गर्दन काटी जाय
दुनिया से तुम तो गये, स्वाद न उनको आय
इन्द्र देव नाखुश हुए, धरती सूखी जाय
फसल बाजरा तिल करें , दूजा न अब उपाय
जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार
चौबे जी दूबे बने, पीटत अपना माथ
छब्बे बनने थे चले, कुछ नहि आया हाथ
मोबाइल ले हाथ में , बाला करती चैट
गिटपिट…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 12, 2014 at 10:00pm — 6 Comments
रंग बिरंगी पुतलियाँ, नयनन रही लुभाय
चित्त्तेरे भगवान् की, देखो महिमा गाय
पुतलियाँ निष्काम सदा, प्रेम से सराबोर
मानव फिर क्यों बन गया, कपटी लम्पट चोर
कठपुतलियाँ प्राण रहित, मानव में है जान
इनको नचाता मानव, मानव को भगवान
निरख निरख ये पुतलियाँ, मन है भाव विहोर
हाथों मेरे डोर है , मेरी प्रभु की ओर
रंग बिरंगी पुतलियाँ, मन को खूब लुभाय
नशा विहीन समाज हो , नाच नाच कह जाय
कठपुतले बन तो गये, पाकर तेरा रंग …
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 4:00pm — 10 Comments
बीच बाजारे हम खड़े , पाप पुण्य ले साथ
पुण्य डगर मैं बढ़ चलूँ , छोड़यो न प्रभु हाथ
पांडव बलहीन सदा, साथ न हो जब भीम
घर सूना कन्या बिना, अंगना बिना नीम
अंगना में लगाइये, तुलसी पौधा नीम
रोग रहित जीवन सदा, राखत दूर हकीम
व्यसन बुरे सब होत हैं, जानत हैं सब कोय
दूर रहें इनसे सदा , जीवन मंगल होय
दुर्दिन कछु दिन ही भले , मिलता जीवन ज्ञान
मित्र शत्रु और नारी की, हो जाती पहचान
बंधन ऐसा हो प्रभू , टूटे न कभी डोर…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 3, 2014 at 5:00pm — 10 Comments
मुक्ति- बंधन //कुशवाहा //
---------------------------
पिंजरे में कैद पंछी
निहारता आसमान को
बाहर आने को बेताब
बंधन
अस्वीकार्य
दीवार को पकड
इधर उधर
झांकता
राश्ते की तलाश
आसान नही
मुक्ति/ बंधन
क्रोधित असहाय
चिल्लाता
घायल बदन / घायल आत्मा
छिपता भी तो नहीं
रिसता लहू
गवाह
जंग- ए- आजादी का
खिसियाहट झल्लाहट
बेबसी
फडफडाहट
गति देती
उड़ जाने को
जिंदगी भी तों…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 2, 2014 at 2:45pm — 6 Comments
दोहे // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
-------------------------------------
माँ वंदन नित है सदा, किरपा दया निधान
अज्ञानी मै बहुत बड़ा, दे दो मुझको ज्ञान
------------------------------------------
क्षीर सागर शयन किये, लक्ष्मी पति हरिनाथ
सुरमुनि यशोगान करें, जोड़े दोनों हाथ
--------------------------------------------
नवरात्री की अष्टमी , देवी पूजो आय
चरण शरण जगदम्बिका, घर घर बजे बधाय
---------------------------------------------
आशीष आपको सदा,…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 1, 2014 at 9:17am — 23 Comments
मात्रा तेरह विषम में ग्यारह सम का मान
दोहा छंद सदा रचें इसका यही विधान
पाँव पाँव की बात है पूत सपूत कपूत
श्रेणी मेरी कौन सी जानू हो अभिभूत
चला दौर प्रतियोगिता आदी अंत न छोर
सुन सुन सब जन खुश हुए मैं भी भाव विहोर
प्रथम बार आया मजा दोहों की बारात
जाग जाग पढता रहा फिर हो गया प्रभात
सखा मगन बंधे बंद सजा तोरण द्वार
करें तिलक है कवि जगत स्वागत है सरकार
ज्ञानी जन मिल बैठिये मंदिर…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 31, 2014 at 9:30am — 5 Comments
दोहे // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
-----------------------------------------
ये मात्र दोहे हैं. चिकित्सा सलाह नहीं .
------------------------------------------
मानस चरचा हो रही सुनो लगा कर ध्यान
भव सागर तरिहो सभी इसको पक्का जान
-------------------------------------------
मटर पराठा खा गये बैठे जितने लोग
लौकी सेवन नित करें भागें सगरे रोग
--------------------------------------
लौकी रस इक्कीस दिन प्रातः पी लें…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 28, 2014 at 1:45pm — 14 Comments
प्रतीक्षा
-------
प्रतीक्षा है
किसकी?
किसे है प्रतीक्षा
मन, मस्तिष्क
या आँखें
विभेद कठिन
आज तक स्मृति में है
वह सब कुछ
विस्मृत हो तो कैसे
क्या उसने भुला दिया होगा
शायद भुला सके
पर मैं नहीं भूल…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 27, 2014 at 5:00pm — 12 Comments
खेती - किसानी -दोहे //प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
-----------------------------------------------------
मौसम फसल खरीफ का पानी की दरकार
खेतों में पानी नही सोती है सरकार
खेती खुद करना भली जानत है सब कोय
बटाई में जबहि दिये फल मीठा नहि होय
फसल समय से बोइये ध्यान से सुने बात
बढ़िया फसल होय सदा सुखी रहो दिन रात
खाद संतुलित डालिये मिट्टी जाँच कराय
बंजर भूमि नही बने इसका यही उपाय
खेत सुरक्षित रहे सदा चिंता करें न…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 25, 2014 at 1:30pm — 4 Comments
नारी नेता जीव दो, लीला अपरम्पार
नेता देश उजाड़ते, रचती घर को नार
नेता हमको चाहिए, बूझे जन की बात
सूरज बन चमका करे, दिन हो या फिर रात
वोट जरूरी है बहुत, देना सोच विचार
निर्भय हो मत डालना, जन्म-सिद्ध अधिकार
धर्म-कर्म के नाम पर, मत डालो तुम वोट
गरल बहुत हम पी चुके, रहे न कोई खोट
सात बजे से शुरू हो, छः पर होता अंत
कार्य करें सब समय से, रखते गुण यह संत
साथ-साथ हम सब चलें, पावन यह त्यौहार…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 10:00pm — 16 Comments
आदमी
---------------
ऊँची ऊँची अट्टालिकाएं
बौने लोग
विकृति और स्वभाव
एक दूजे के
पर्यायवाची
चाहरदीवारी के मध्य
शून्य…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 20, 2014 at 6:41pm — 34 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |