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तलाश
-------
निकल पड़ा हूँ
रोज की तरह आज भी
तलाश में ?
रोटी की

गोल हो , पतली या मोटी
जली काली , सफ़ेद
क्या फर्क
स्वाद तों एक ही होगा


कैसे ढूंढ लेते हो
अंतर
पांच सितारा होटल के नीचे पड़े
बजबजाते कूड़े में पडी
और
सुखिया के चूल्हे में सिंकी
सोंधी गंध वाली रोटी में


तुम्हें पता है ?
भूख कैसी होती है ?
मैं जानता हूँ।


मौलिक और अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

Views: 364

Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 17, 2015 at 10:17am

सादर आभार  आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , प्रोत्साहन हेतु . 

स्नेह बनाये रखियेगा . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 11:45pm

आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी  भूख तो भूख है ....बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 16, 2015 at 4:54pm

आदरणीय मोहन सेठी  जी 

सादर अभिवादन , 

प्रोत्साहन हेतु सादर आभार 

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 16, 2015 at 3:38pm

अतिसुंदर .....बहुत बहुत बधाई इस मार्मिक रचना के लिये ...सादर 

कृपया ध्यान दे...

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