शाम 
 
 स्वागतम 
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 स्वागत तेरा शाम सदा 
 श्याम सी सदा शाम हो , 
 श्वेत श्याम उन यादों की 
 हर पल सुनहरी शाम हो
चाहत 
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दूर होते हम तभी , 
भोर की जब बांग हो .
पास लाती चाहत हमे 
नित मिलन की शाम हो
.
जिंदगी 
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जिंदगी तू सुबह भी है 
 जिंदगी तू शाम भी है 
 बोझिल कभी तू दर्द से 
 देती कभी आराम भी है
.
हसरत 
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 हाथ थामे चलते रहें 
 हसरत मेरी रही सदा 
 मुडके न देखेंगे कभी 
 लाख कितने बदनाम हों
.
परिवर्तन 
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थे चमन में हम तनहा 
 मरुस्थल के भाल पर 
 उगने लगे है फूल अब 
 सूखे कैक्टस की डाल पर
.
संध्या काल 
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 फ़िक्र न कर तू ए जिंदगी 
 न तू बुरे हाल है 
 नियम है प्रकृति का
 जीवन का संध्या काल है
.
मैखाना 
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 जख्म मिले सी लिए 
 उफ़ न करी नाम को 
 मैखाने न गया कभी 
 गम भुलाने शाम को।
.
मौलिक / अप्रत्याशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Comment
आदरणीय डाक्टर साहब
सादर अभिवादन .
आभार
बढ़िया कुश्वाहा जी
सुन्दर प्रयास.
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