गुरु लघु और लघु गुरु, आपस में है मेल
चूक हुई तों समझिये, बिगड़े सारा खेल
खीरे सा मत होइये , गर्दन काटी जाय
दुनिया से तुम तो गये, स्वाद न उनको आय
इन्द्र देव नाखुश हुए, धरती सूखी जाय
फसल बाजरा तिल करें , दूजा न अब उपाय
जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार
चौबे जी दूबे बने, पीटत अपना माथ
छब्बे बनने थे चले, कुछ नहि आया हाथ
मोबाइल ले हाथ में , बाला करती चैट
गिटपिट गिटपिट बोलतीं , बिल्ली पकडती रैट
आपके अनुमोदन ने , डाली मुझमे जान
सीख रहा हूँ मैं अभी, मोहे नहि अभिमान
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
१२-०८-२०१४
Comment
आदरणीय प्रदीपजी, आपके साहित्य सद्प्रयास के क्रम में मैं अकिंचन किसी काम आ सका तो यह मेरा सौभाग्य होगा. आप जैसे अनुभव-समृद्ध अग्रजों का सान्निध्य मेरे लिए भी अत्यंत उपयोगी है, इसका ज्ञान है मुझे.
आदरणीय, आपका मेरे जीवन में वैचारिक संप्रेषण हेतु अपनाये गये किसी माध्यम से सदा स्वागत है.
पुनः, मैं आपके सद्प्रयास के क्रम में किसी काम आ सका तो स्वयं को धन्य मानूँगा.
सादर
परम आदरणीय श्री सौरभ जी
सादर
आपके पूर्व निर्देश के अनुपालन में मैने पाठों को सुरक्षित कर लिया है. और उसके अनुसार अभ्यास शुरू करना है.
खुरचन .. बता रहा है कि जो निम्नस्तरीय दोहे लिखे गए थे, ये अंतिम भाग है. प्रयास होगा कि आपके स्नेह छाया में जब मैं मंच पर आऊ तों कुछ बढ़िया लेकर ही. मार्गदर्शन हमेशा अपेक्षित था और रहेगा . मुझे विश्वास है कि आप मुझे पूर्व की भांति प्रदान करते रहेंगे.
जय हो मंगल मय हो. विदा . कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभ कामनाये. अति शीघ्र मिलते है. छोटे से अल्प विराम के बाद.
आदरणीय प्रदीपजी,
आपका संवेदनशील मन जब अपनी रौ में होता है तो इसकी सोच एक अलग ही ऊँचाई पर होती है. आप जिस तरह से अपनी बातों को साझा करते हैं उसका आयाम बहुत बड़ा हुआ करता है. ऐसा कुछ कहने के क्रम में दिखती आपकी उत्तरदायी आकुलता को मैं नमन करता हूँ. आदरणीय, प्रमाण है, प्रस्तुत हुए दोहों की कहन !.
सम्यक-सम्यक-सम्यक ..!
परन्तु, काश कि आपकी यही आकुलता दोहा छन्द के विधान को एक बार पढ़ लेने में दिखाते. बहुत कुछ स्वयं सध जाता, अलबत्ता, दोहे भी दोहे की तरह दिखते.
पढ़े लिखे जो उसे क्या कहना.. नहीं पढ़े जो उसे क्या कहना ..
सादर
जग में संगत बडन की, करो सोच सौ बार
जोड़ी सम होती भली , खाओ कभी न मार
बहुत सुन्दर और सच्चाई .........सादर बधाई
बहुत सुन्दर ...सादर बधाई
आपके अनुमोदन ने , डाली मुझमे जान
सीख रहा हूँ मैं अभी, मोहे नहि अभिमान.......बहुत खुबसुरत
अनुमोदन सच में जान ही डालता है जैसे जब तक ना हो सांस अटकी रहती हैं .....आदरणीय चाचाजी सादर नमस्ते
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