मात्रा तेरह विषम में ग्यारह सम का मान
दोहा छंद सदा रचें इसका यही विधान
पाँव पाँव की बात है पूत सपूत कपूत
श्रेणी मेरी कौन सी जानू हो अभिभूत
चला दौर प्रतियोगिता आदी अंत न छोर
सुन सुन सब जन खुश हुए मैं भी भाव विहोर
प्रथम बार आया मजा दोहों की बारात
जाग जाग पढता रहा फिर हो गया प्रभात
सखा मगन बंधे बंद सजा तोरण द्वार
करें तिलक है कवि जगत स्वागत है सरकार
ज्ञानी जन मिल बैठिये मंदिर कुटी छवाय
करम ज्ञान चरचा करें धरम ध्वजा फहराय
ज्ञानी जन सब आइये लेयो जशन मनाय
ऐसा अवसर फिर कहाँ अंत में न पछताय
मात वंदना साध कर गुरुवरों को प्रणाम
आशीष दो मोहय को सफल होय सब काम
प्रतीक्षा गुरु आपकी जल्दी आयो धाय
चातक प्यासा मर रहा देयो बूँद पिलाय
मिला आशीष आपका दोहे से शुरुआत
मानी आज्ञा आपकी होगा जरुर प्रभात
दीजे अब आशिस मुझे प्रस्तुत छन्द समान
दोहा है या छंद ये इसका न मुझे ज्ञान
.
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
३०-७-२०१४
Comment
स्नेही जीतेन्द्र जी
सादर आभार
सुंदर दोहावली , आदरणीय प्रदीप जी. हार्दिक बधाई आपको
आदरनीय प्रदीप कुशवाहा भाई , सुन्दर दोहावली के लिए बधाइयाँ |
आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
सादर
सच ही है , मैने अभी इस दिशा में कार्य प्राम्भ किया है. आपके मार्गदर्शन कि सदेव प्रतीक्षा रहेगी
स्नेह हेतु आभार
कुशवाहा जी
दोहा एक कठिन छंद है i केवल मात्रा गिन लेने से काम नहीं चलता i सौरभ जी ने छंद योजना में इसके शिल्प पर विस्तार से चर्चा की है
पर आपका यह कथन स्वीकार्य है
दीजे अब आशिस मुझे प्रस्तुत छन्द समान
दोहा है या छंद ये इसका न मुझे ज्ञान
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