नारी नेता जीव दो, लीला अपरम्पार
नेता देश उजाड़ते, रचती घर को नार
नेता हमको चाहिए, बूझे जन की बात
सूरज बन चमका करे, दिन हो या फिर रात
वोट जरूरी है बहुत, देना सोच विचार
निर्भय हो मत डालना, जन्म-सिद्ध अधिकार
धर्म-कर्म के नाम पर, मत डालो तुम वोट
गरल बहुत हम पी चुके, रहे न कोई खोट
सात बजे से शुरू हो, छः पर होता अंत
कार्य करें सब समय से, रखते गुण यह संत
साथ-साथ हम सब चलें, पावन यह त्यौहार
योग्य व्यक्ति को ही चुनें, हो स्थिर नव-सरकार
लाइन लंबी देखकर, लौट न आना भ्रात
बहुत जरूरी दान ये, होगा नया प्रभात
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
मौलिक / अप्रकाशित
२०.०४.२०१४
Comment
आदरणीय श्री सौरभ जी
सादर
फिर प्रयास जारी, आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने हेतु .
आपके दोहे कथ्य और शिल्प के पटल पर सटीक सधे हुए हैं, आदरणीय प्रदीपजी.
इस गहन अभ्यास के लिए दिल से शुभकामनाएँ और सादर बधाइयाँ.
सादर
आदरणीया प्राची जी
सादर
अब सीखने की प्रक्रिया में आया हूँ.
मार्ग प्रशस्त करते रहिये.
तकनीकी जानकारी कहाँ मिलेगी ? सादर
आभार
मतदान को प्रेरित करते सुन्दर सार्थक दोहे आ० प्रदीप कुशवाहा जी
सात बजे से शुरू हो, छः पर होता अंत ................................हो शुरू ( विषम चरण का अंत १२ से होना चाहिए यहाँ २२ हो रहा है)
कार्य करें सब समय से, रखते गुण यह संत.........................वक्त से( यहाँ भी वाचन में स्वर भार अंत में २२ बन रहा है; इसलिए समय को वक़्त कर लेने पर १२ से विषम चरण का अंत प्रवाह को निर्बाध रखेगा)
साथक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
स्नेही जीत जी
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीय श्री सत्य नारायण जी
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीय श्री भंडारी जी
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीया कल्पना जी
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
सादर आभार
आदरणीय श्री श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय श्री ब्रजेश जी
सादर
आपकी प्रसन्नता ही मेरी सफलता की सीढी है.
प्रोत्साहन हेतु आभार
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