प्रतीक्षा
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प्रतीक्षा है
किसकी?
किसे है प्रतीक्षा
मन, मस्तिष्क
या आँखें
विभेद कठिन
आज तक स्मृति में है
वह सब कुछ
विस्मृत हो तो कैसे
क्या उसने भुला दिया होगा
शायद भुला सके
पर मैं नहीं भूल पाया
गुजरा कल
वे यादें
स्मृति पटल पर
आज भी कौंध जाती हैं
पुरवाई बयार से उभरी
पुरानी चोट की तरह
सुबह-शाम
सड़क से गुजरती बस से
झाँकती बाला
अद्वितीय मुस्कान
लहराते केश
एक मौन आमन्त्रण
शायद प्रतीक्षा ही जिंदगी है
थमा नहीं है
बस का आना-जाना
जर्जर हो चुकी है
खड़खड़ाती
भंग करती मेरी तन्द्रा
आज भी वह नहीं
आई शायद कभी....
प्रतीक्षा है
एक अंतहीन प्रतीक्षा
मौलिक /अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२७-७-२०१४
Comment
परम सनेही श्री सौरभ पांडे /अनुज श्री जी
कंधे पर कई लाशों का बोझ है . शमशान तक पहुंचाता नही
शेर अकेला हो जंगल में सुनामी से घबराता नही
सत्य वचन है आपका आज्ञा शिरोधार्य
प्रेम निरंतर रहे बना करता रहूँ सत्कार्य
था अकेला मैं चला अकेला ही जाऊंगा
रोके टोके लाख कोई
गीत मिलन के ही गाऊंगा
जय हो मंगल मय हो
सादर / सस्नेह
मेरे को हमेशा कि तरह रास्ता दिखाते रहिये
आदरणीय प्रदीपभाईजी, स्वस्थ हो रहे हैं, सुन कर असीम आनन्द महसूस कर रहा हूँ. ..
आदरणीय, यदि मेरा वाकई भला चाहते हैं. आपको मेरे प्रति तनिक ’भाव’ हैं, तो ऐसे किसी सम्बोधन से बचें.
पहले दुखता था. अब तो ये गाली लगता है, वो भी खिजलाता हुआ.
(आपके माध्यम से स्पष्ट कह दिया, ताकि अनन्यों को ’क्लू’ मिल जाये..)
सादर
आदरणीय गुरुदेव जी/ आप जो भी कहें अपने संबोधन में. गुरु बना चुका हूँ तों वापस कैसे लौटूं.
सादर
बीमारी कुछ इस कदर बढ़ी कि चलने पर लगता है जैसे चांद पर चल रहा हूँ. दृष्टि बहुतकम हो गयी. अब कुछ सुधार है. लिखता कुछ हूँ लिखा कुछ और जाता है. ख़ैर आपका स्नेह प्राप्त हुआ .
स्नेह हेतु आभार
आदरणीय अमोद कुमार श्रीवास्तव जी
सादर
सच ही है
स्नेह हेतु आभार
आदरणीय डा. आशुतोष मिश्र जी
सादर
सच ही है
स्नेह हेतु आभार
आदरणीय लड़ीवाला जी
सादर
चलते -चलते ?
स्नेह हेतु आभार
आदरणीय डा . साहब श्रीवास्तव जी
सादर
शायद ?
स्नेह हेतु आभार
बाला के बिम्ब पर आपने बहुत कुछ कहने की कोशिश की है, भाईसाहब. दिली बधाई ही दूँगा.
वैसे आपको पुनः क्रियाशील होते देखना हृदय को भला लग रहा है. ऐसे ही प्रयत्नशील रहें.
सादर
अतीत हमेशा वर्तमान पे भारी रहा है .... भावों को उकेरने के लिए ... बधाई ... सादर
आदरणीय कुशवाहा जी ..स्मृति पटल से यादों को हटा पाना वाकई इतना आसान नहीं है ,बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर
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