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दोहा // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //

बीच बाजारे हम खड़े , पाप पुण्य ले साथ
पुण्य डगर मैं बढ़ चलूँ , छोड़यो न प्रभु हाथ


पांडव बलहीन सदा, साथ न हो जब भीम
घर सूना कन्या बिना, अंगना बिना नीम


अंगना में लगाइये, तुलसी पौधा नीम
रोग रहित जीवन सदा, राखत दूर हकीम

व्यसन बुरे सब होत हैं, जानत हैं सब कोय
दूर रहें इनसे सदा , जीवन मंगल होय

दुर्दिन कछु दिन ही भले , मिलता जीवन ज्ञान
मित्र शत्रु और नारी की, हो जाती पहचान


बंधन ऐसा हो प्रभू , टूटे न कभी डोर
माला निशदिन मै जपूँ , छूटे न कभी छोर


भले भलाई करन लगे , पकड़ प्रीत की डोर
राम राज अब आ गया, जगह जगह है शोर

मानव तू ग्यानी बड़ा , भूला शिष्टाचार
व्यभिचार में लिप्त हुआ , क्यों ऐसा व्यवहार

.

मौलिक/ अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
३-८-२०१४

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:17am

आदरणीय प्रदीप कुशवहा भाई , सुन्दर संदेश देते दोहों के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 11:06am

आ० भाई प्रदीप जी इन शिक्षाप्रद दोहों के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:17pm

आदरणीय डा. विजय शंकर जी 

सादर 

स्नेह बनाये रखिये 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:16pm

स्नेही श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

स्नेह हेतु आभार. प्रयास करूँगा. 

सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:15pm

सादर आभार 

आदरणीय  श्री सिंह साहब जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:14pm

आदरणीय अनुज श्री , सादर सस्नेह 

आप को विष्णु भगवान की तरह आना पड़ा . पर मैं ताकता आपकी ही ओर रहता हूँ नीचे  दलदल में भी जकडा हूँ. चालीस साल सत्रह दिन जिस वातावरण में रहा हूँ वहीं की भाषा का विशेषग्य रहा. साहित्य से कोसो दूर. जो कुछ भी लिख रहा हूँ आप सबके स्नेह के कारण . मैं तों छाया ग्रह हूँ आपके तेज से ही रोशन होता रहा हूँ, आप जानते ही हैं. अभी गलियों में खेल रहा हूँ, इस्टेडियम में कब खेल पाता हूँ. पता नही. अपना स्नेह जरुर देते रहिएगा उसी से भव सागर पार कर लूँगा. जय हो मंगलमय हो .

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2014 at 8:20pm
सुविचार , अच्छी नसीहतें , बधाई .
Comment by ram shiromani pathak on August 3, 2014 at 8:06pm

(आदरणीय योगराज जी से सहमत हूँ )
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय। । हार्दिक बधाई आपको। । सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 8:01pm

शिक्षाप्रद दोहे!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 3, 2014 at 6:59pm

हे कविश्रेष्ठ, क्या आपको नहीं लगता कि अब दोहे के विषयों एवं भाषा में आधुनिकता लाने का समय आ चुका है ?
आखिर कब तक हम गुज़री सदियों की भाषा और विषयों को ढोते रहेंगे ? किसका होने वाला है इस से ?
क्या भाषा और विषय की नवीनता से इस छंद की सुंदरता और नहीं बढ़ेगी ?

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