कायर ( कहानी )
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रक्त दान -महा दान
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बढ़ते वजन से परेशान हैं, कैंसर के मरीज को देख -सुन कर भय होता है कि कहीं ये रोग आप को भी न लग जाए. हृदय रोग और हृदय आघात की संभावना कभी भी।
आप इन जोखिमों को कम कर सकते हैं यदि आप १८ से ६५ वर्ष की आयु के स्वस्थ वयस्क हैं। बस आपको करना है नियमित रक्त दान.
४५ कि.ग्राम से अधिक वजन वाले लोग तीन माह के अंतराल पर रक्त दान कर सकते हैं।
स्वेक्षिक रक्त दान से प्राप्त रक्त ही सबसे ज्यादा सुरक्षित रक्त होता है।
गर्भवती माताओं , गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों , एच. आई. वी. हीमोफीलिया / थेलीसीमिया जैसे रोग से ग्रासितो को रक्त दान के माध्यम से दे सकते हैं जीवन दान।
आइये रक्त दान करें. खुद स्वस्थ रहें औरों को स्वस्थ करें ...
राकेश , अपने मित्रों के साथ मित्र के पिता के होने वाले आपरेशन हेतु रक्त देने अस्पताल आया था। आपरेशन बड़ा था इस लिए अधिक मात्रा में रक्त की आवश्यकता थी , रक्त जाँच कक्ष में भीड़ लगी थी। राकेश कक्ष की दीवार पर टंगे बोर्ड को ''रक्त दान - महा दान'' बार बार पढ़े जा रहा था। अन्दर ही अन्दर बहुत भयभीत था , इतना खून निकल जाएगा ?, कमजोरी आ जायेगी।? न जाने कितने प्रश्न उसके मष्तिष्क में बिजली की तरह कौंध रहे थे। काश दोस्तों के खून से ही काम चल जाए , मुझे खून न देना पड़े। मुहँ छुपा के भागना भी ठीक न था। क्या किया जाए ? विचार युद्ध में वह पराजित हुआ। फिलहाल मौके से निकल लिया जाय अगर जरूरत हुई तों फोन कर ही देंगे मित्र गण। राकेश धीरे से कक्ष से बाहर निकला और चुपके से अस्पताल परिसर से बाहर निकल गया।
सवेरे से राकेश ने कुछ खाया नही था इसलिए नुक्कड़ मोड़ पर कचौरी की मशहूर दुकान से चार पूडी खरीदीं और जल्दी जल्दी हलक के नीचे उतारने लगा। अभी खा भी नही पाया था कि मोबाइल की घंटी ने उसे चौंका दिया। एक बार सोचे कि फोन उठाऊं दूसरा मन कहे न उठा, फिर मन कहे उठा ही ले ले यार, लगता बचेंगे नही अब तों खून देना ही पड़ेगा। जिस बात से डर का भाग रहे थे वो सामने आ ही गयी । जल्दी से एक हाथ से बटन दबाया और बगैर उधर की बात सुने बोला'' दो मिनट में आ रहा हूँ, कही भागा नही हूँ। ''
अस्पताल में रक्त -दान कक्ष में जैसे ही राकेश प्रवेश करने को हुआ कि दोस्त मनोहर की आवाज ने चौंका दिया '' राकेश उधर कहाँ जा रहे हो , मेरे पीछे आओ, आपरेशन थियेटर की ओर। ''
''मनोहर आपरेशन तों दो दिन बाद था , आज ही क्यों कर रहे हैं? खून पूरा पड़ गया न ? और जरूरत तों नही ?'' राकेश मन ही मन खुश , चलो जान बच गयी।
'' राकेश तुमने फोन पर मेरी बात नही सुनी थी क्या ? फिलहाल वो खून पापा जी के नही , तुम्हारी पत्नी यानी मनु भाभी जी और भतीजी मुनिया के काम आ रहा है , स्कूल से जब मुनिया को ले कर भाभी जी घर लौट रही थीं, मोड़ पर तेज गति से आ रही मोटर साईकल से टकरा कर घायल हो गयीं हैं। इलाज चल रहा है। खून की कमी नही पड़ेगी। फिर पापा जी का आपरेशन तों दो दिन बाद होना है। हो जायेगी व्यवस्था ''
राकेश अपनी कायरता पर मन ही मन लज्जा के भँवर में डूबता चला गया। स्वतः उसके कदम मुड गए रक्त दान कक्ष की ओर।
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
Comment
आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी सादर अभिवादन
इतने बड़े मंच पर २ जवान समर्थन में आये , आभार सामाजिक कार्य को प्रोत्साहित करने हेतु.
जय हो मंगलमय हो
प्रेरणादायक कहानी ... मुझे भी रक्तदान के महत्व का भान उसी समय हुआ था, जब मेरे परिजन को रक्त की जरूरत थी और मुझे मेरे विभाग के सौजन्य से तुरंत उपलब्ध हो गयी थी. हमलोग का विभाग बीच बीच में रक्तदान शिविर का आयोजन करता है और काफी लोग स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं. मेरी पत्नी, मेरे बच्चे भी बीच बीच में रक्तदान करते हैं. और यह सत्य है रक्तदान महादान क्योंकि इसे अभीतक प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सका है.
सुन्दर है !
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