For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रिय ! मेरी बात सुनो

आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
मैं आपको रंगना चाहता हूँ
प्रकृति के रंगों से ॥

मैं आपको देना चाहता हूँ
टेसू के फूलों की लालिमा
कपोलों पर लगाने के लिए ॥
मृग के नाभि की थोड़ी सी कस्तूरी
देह -यष्टि पर लगाने के लिए ॥
फूलों के रंग -बिरंगे परागकण
माथे की बिंदी सजाने के लिए ॥
और तो और
थोड़ी सी लज्जा मांग कर लाई है मैंने
आपके लिए
लाजवंती के पौधों से ॥

इसके बाद
हवाएं आपसे अठखेलियाँ करेंगी
इन्द्रधनुष शरमा जाएगा
और तितलियाँ
अजूबा -अजूबा कह शोर मचा देंगी

Views: 356

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by baban pandey on October 3, 2010 at 8:34am
आशीष भाई ....शुक्रिया ..पढ़ते रहिये /पढ़ते रहिये
गणेश भाई .....हौसला आफजाई करते रहिये
नविन भाई ...हम लोग तो महिलायों पर खूब लिखते है ..पर महिलाए पुरुषो पर शायाद कम ही लिखती है ...
शुक्रिया

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2010 at 2:41pm
आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
सही कहा है आपने बब्बन भईया , आपकी रचना हमेशा सन्देशपरक होती है ,यह भी ,
Comment by आशीष यादव on October 1, 2010 at 4:33pm
waah, prakriti ki in upmao ko aap ne sahi jagah rakh kar ek uttam kawita ki rachna kr dali. sach me jo sundarata prakriti me hai aur kahi nahi.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service