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प्रिय ! मेरी बात सुनो

आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
मैं आपको रंगना चाहता हूँ
प्रकृति के रंगों से ॥

मैं आपको देना चाहता हूँ
टेसू के फूलों की लालिमा
कपोलों पर लगाने के लिए ॥
मृग के नाभि की थोड़ी सी कस्तूरी
देह -यष्टि पर लगाने के लिए ॥
फूलों के रंग -बिरंगे परागकण
माथे की बिंदी सजाने के लिए ॥
और तो और
थोड़ी सी लज्जा मांग कर लाई है मैंने
आपके लिए
लाजवंती के पौधों से ॥

इसके बाद
हवाएं आपसे अठखेलियाँ करेंगी
इन्द्रधनुष शरमा जाएगा
और तितलियाँ
अजूबा -अजूबा कह शोर मचा देंगी

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Comment

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Comment by baban pandey on October 3, 2010 at 8:34am
आशीष भाई ....शुक्रिया ..पढ़ते रहिये /पढ़ते रहिये
गणेश भाई .....हौसला आफजाई करते रहिये
नविन भाई ...हम लोग तो महिलायों पर खूब लिखते है ..पर महिलाए पुरुषो पर शायाद कम ही लिखती है ...
शुक्रिया

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2010 at 2:41pm
आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
सही कहा है आपने बब्बन भईया , आपकी रचना हमेशा सन्देशपरक होती है ,यह भी ,
Comment by आशीष यादव on October 1, 2010 at 4:33pm
waah, prakriti ki in upmao ko aap ne sahi jagah rakh kar ek uttam kawita ki rachna kr dali. sach me jo sundarata prakriti me hai aur kahi nahi.

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