नमस्कार अहबाब, तरही मुशायरा २३ में वक़्त पर मैं कोई ग़ज़ल नहीं कह पाया, क्योंकि तब तक मैं इस परिवार का हिस्सा ही नहीं था. अब उस मिसरे पर ख़ामा घिसाई का मन हुआ तो कुछ अश'आर कह दिए. आपकी नज़्र हैं, कोई ग़लती या ऐब दिखाई दे तो बेशक़ इत्तेला करें
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गरचे तेरे ख़याल का मेयार हम नहीं
तो क्या तेरी तलब से भी दो-चार हम नहीं
वो चारागर है, सोचके मरता है दिल का हाल
आज़ार तो यही है कि बीमार हम नहीं
ऐ जान-ए-जान ग़ौर से देख इन्तहा-ए-शौक़
ख़ून-ए-जिगर है हम पे, हिनाज़ार हम नहीं
मरते हैं, मर नहीं सके, तेरे फ़िराक़ में
कहता है कौन इश्क़ में नाचार हम नहीं
फ़ारिग़ हैं दिलबरी से ब_क़द्र-ए-जूनून-ए-शौक़
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं
जी ने बनाया दर्द को गोर-ए-दिल आख़िरश
कूचा-ए-इश्क़ में किसी पे बार हम नहीं
हैं और भी वबाल यहाँ, बाद-ए-ख़स्तगी
रह्न-ए-जुनूँ हैं कुश्ता-ए-आज़ार हम नहीं
हासिल है दिल को दर्द-ए-ज़माना का साथ भी
लेकिन तेरे ख़याल से बेज़ार हम नहीं
आशिक़ हैं हम तो छेड़ हमें जिस क़दर बने
अब क्या तेरे सितम के भी हक़दार हम नहीं
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मेयार = standard ; तलब=हसरत ; हिनाज़ार = मेंहदी लगे हुए ; मरते हैं = दुखी हैं (तड़पते हैं) ; नाचार=मजबूर ; फ़ारिग़.....शौक़ = शौक़ के जूनून में दिलबरी छोड़ दी है ; गोर-ए-दिल = दिल की कब्र ; आखिराश=आखिर में ; बाद-ए-ख़स्तगी = टूट जाने के बाद ; रहन-ए-जुनूँ = जूनून के हाथों गिरवी ; कुश्ता-ए-आज़ार=बीमारी से मारे हुए ;
Comment
Shukriya Raz Nawadwi sahab..... aapne ghazal ko waqt diya uske liye shukrguzaar huN...:)
बहुत खूब, बड़ी रवानगी है अशआर में! मज़ा आ गया जनाब!
Shukriya Arun bhai.... Mushaire ke waqt nahiN kah paaya. baad meN kuchh khayaalat jam'a ho gaye to kalaam kar diya.......inaayat.
गज़ब की उस्तादाना गज़ल है आपकी !
अगर मुशायरे में प्रेषित की होती तो सबसे बेहतरीन ग़ज़लों मे से एक होती !
वाह !
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