For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- २३

बड़े प्रेम की छोटी सी प्रेम कहानी...

-------------------------------------------------

परछाईयों के पीछे आज फिर नज़र की रहलत (प्रस्थान) हुई, रोशनियों की शाहराह (चौड़ी राह) पे हम कुछ यूँ सफरपिजीर (सफर पे निकले) हुए. रात की सन्नाटगी, दरख्तों से हवाओं की सरगोशी (हौले से कानों में बात करना), चाँदनी का सीमाब (चांदी जैसा) सा पिघलता बदन, और फज़ा में उसकी यादों का लहराता आँचल- मैं गोया सफर-ए-इरम (इक काल्पनिक स्वर्ग की यात्रा) की ओर रवाँ होने को था.

 

ज़माना गुज़र गया है कूचा-ए-यार (प्रेमी की गली) का रुख किए. न जाने पहाडियों की तलहटी में बसा वो गाँव नींद के किस मुकाम पे अभी होगा. और उसके शबिस्ताँ (शयन्गाह) में ख़्वाब के कैसे तमाशे हो रहे होंगे, उसके रुख पे काकुलेपंचां (उलझी लटें) किस अदा से सो रही होगी, उसके दरीचे से चाँद कैसी हसरत से झांक कर उसे देखता होगा.

 

जब मैं आखरी बार उससे मिला था तो मुहब्बत रुसवा हो चुकी थी, मिलने की उम्मीदों का बिस्तर बंध चुका थाजैसे किसी सिपाही का बिस्तर बंधता है सरहद पे जाके लड़ने और क़ुर्बान हो जाने के लिए. मुहब्बत से नदामत (शर्मिंदगी), नदामत से हिकारत, और हिकारत से अजीयतोफजीहत(दर्द और मुसीबत) का सफर तो अब शुरू हुआ था. हमने पहली बार जाना था किसी को एकदम से पा कर खो देने का अलम कितना पुरआज़ार (दुःख से भरा) होता है. और ये भी कि ज़िंदगी में मुहब्बत करने की उम्र होती है या फिर हालात क्यूंकि अज्द्वाजी (दाम्पत्य) ज़िंदगी में किसी और की चाहत की इजाज़त नहीं है. 

 

मेरी पत्नी मुझे लेने आई थीं, खामोशी से ये कहते हुए कि कुछ भी नहीं बिगड़ा है. दो दिनों की भाग-दौड़, तीन रातों की बेनीन्द मशक्कत, और टूट गए ऐतेबारों का बेजान मलबा- सब कुछ बहुत बोझिल और कसीदगी (तनाव) से भरा था. क्या ज़िंदगी में ऐसा भी हो सकता है?

 

हम इम्फाल एअरपोर्ट पंहुंच चुके थे. सिक्यूरिटी चेक के बाद एयरक्राफ्ट पे भी बैठ चुके थे. जहाज अब दौड़नेलगा, और कुछ देर में उड़ने भी. आसमान की ऊँचाइयों से नाम्बोल की पहाडियाँ नज़र आने लगीं थीं. ज़िंदगी में शायद आखरी बार उन्हें देख रहा था जो इतने करीब आके भी अब आहिस्ता आहिस्ता नज़रों से ओझल हो रही थीं. उठती हुई ऊचाइयों के साथ दिल में इक हूक से भी उठती गई और बढ़ती हुई दूरी के साथ इसकी खलिश भी जिसके दर्द का साया आज भी मुझमें हमागोश है.

 

ज़िंदगी की परछाईयों के पीछे भागने के सफर का वैसे तो ये इख्तेताम (अंत) था, मगर ये इक ऐसी दास्तानेमुहब्बत का आगाज़ (प्रारम्भ) भी था जिसने मेरे अंदर के शायर को फिर से इक नई ज़िंदगी दे दी.

 

मैं राज़ नवादवी बन गया!

 

© राज़ नवादवी

पुणे, १५/०३/२०१२

 

 

Views: 396

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 3, 2012 at 11:07pm
प्रिय राज जी, मैंने आपकी मंशा पर कभी संदेह नहीं किया। आपकी रचनाओं का स्वागत है। वो तो मैंने केवल आपसे एक निवेदन किया जिसे आपने बड़ी सज्जनता से स्वीकारा।
आप मुझे कोमल ह्रदय के लगे और मुझे ये कहते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि मेरा अनुमान बिलकुल सही था। साभार।
Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 9:25pm

प्रिय गौरवजी, शुक्रिया आपका कि आपने मेरे लिए इतना वक़्त निकाला. दरअसल कहना चाहूँगा कि मेरी वैसी कोई मंशा नहीं जैसा कि आपने सोच लिया है. दरअसल मैं छुट्टियों पे था और मेरी रचनाएं एक अरसे से से साया होने की मुहताज थी. मैंने कहा- आओ मैं तुम्हारी मुहताजगी दूर कर दूं. ओबीओ का मग्नून हूँ इस खातिर. अब देखिए न पिछले कुछ रोज़ से मैंने कुछ भी पोस्ट नहीं किया है क्यूंकि फिरसे ज़िंदगी की आपाधापी में कहीं गुम हो गया हूँ. न जाने अब अगला मौक़ा कितने महीनों बाद मिले. 

दूसरी बात ये है कि किसी के द्वारा मेरी रचनाओं का पढ़ा या न पढ़ा जाना तो ऊपर वाले की मेहर है, मैं उसमें दखलंदाजी नहीं करता, न ही वैसी निसबतों से मायूस होता हूँ. हाँ, कोई मेरी रचनाओं को पढ़कर कुछ फरमाता है तो ये मेरे लिए ये इक ख़ास एहसान है, दरूनी मुसर्रत तो ज़रूर होती है. आप फ़िक्र न करें, अच्छी रचानाएँ महकते फूल की तरह हैं, फूल नज़र से दूर हो सकता है, उसकी खुशबू नहीं. मैं अल्ला ताला से दुआ करता हूँ कि आपको वो नाम और शुहरत दें जिसके आप हकदार हैं. 
तहे दिल से कहता हूँ मैंने आपकी किसी बात का ज़रा भी बुरा नहीं माना है. आप बेफिक्र रहें. 
आमीन 
राज़ नवादवी. 
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on July 1, 2012 at 6:52pm

प्रिय राज जी

नमस्कार
मित्रवर, कृपया मेरी बातों का बुरा मत मानियेगा|
आप लिखते हैं ये प्रसन्नता की बात है| अपनी प्रतिभा को निखारने और उसे लोगों के सामने रखने का अधिकार सबको है|
परन्तु आप जिस तरह से एक सांस में १५-२० रचनायें एक साथ पोस्ट कर देते हैं ये अन्य रचनाकारों के साथ-साथ आपके लिए भी अच्छा  नहीं है|
आपके एक बार में थोक भाव से रचनायें पोस्ट करने से अन्य सम्मानित लेखकों की कृतियाँ तुरंत ही मुख्य पृष्ठ से गायब होकर अगले पन्नों पर पहुँच जाती  हैं जिससे कई बार पता भी नहीं लग पाता की उन्होंने कोई ब्लॉग पोस्ट किया था और इस वजह से वो रचनायें गुमनाम सी हो जातीं हैं| क्या आप ऐसा चाहेंगे?
और आपकी ये आदत आपके लिए भी नुकसानदायक है| इसका पता आपको  अपनी कविताओं  के views देख कर लग जायेगा| किसी पर दो किसी पर तीन|
मैं आपपर दबाव तो नहीं डाल सकता सिर्फ एक अनुरोध कर सकता हूँ| आशा है आप विचार अवश्य करेंगे|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service