क्या पता ईमान की इतनी कमी हो जाएगी॥
चंद सिक्कों के लिए नीयत बुरी हो जाएगी॥
क्या ख़बर थी ज़िंदगी यूं दोगली हो जाएगी।
बात सब इंसानियत की काग़जी हो जाएगी॥
सच को मैंने कह दिया सच जब सभी के सामने,
क्या ख़बर थी दोस्तों से दुश्मनी हो जाएगी॥
आ रहे है आजकल नेता जी फिर से गाँव में,
लग रहा कोई मुसीबत फिर खड़ी हो जाएगी॥
आपको भी आशिक़ी का रोग जब लग जाएगा,
रात दिन तब जागने की बेबसी हो जाएगी॥
अब्र1 उसके प्यार के मुझपे अगर बरसे नहीं,
यूं ही आवारा मेरी तष्नालबी2 हो जाएगी॥
मुफ़लिसी3, बेरोज़गारी यूं अगर बढ़ती रही,
क़ौम फिर मजबूर होकर नक्सली हो जाएगी॥
चाँद “सूरज” गुम हैं तारे तीरगी4 है राह में,
तेरी रहमत5 जो हुई तो रौशनी हो जाएगी॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
1. बादल, 2. प्यास, 3. गरीबी 4. अंधेरा, 5. कृपा
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online