Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 17, 2016 at 1:56am — 12 Comments
साहब ए इश्क़1 को अफ़गार2 किया है मैंने
बेवफ़ा सुन ले तुझे प्यार किया है मैंने
कोई सौदागर ए ग़म3 हो तो इसे ले जाये
दर्द ओ ग़म को सरे बाज़ार किया है मैंने
दिल की दहलीज़4 पे रख के तेरी यादों के चिराग
हर शब-ए-हिज़्र5 को गुलज़ार किया है मैंने
दर्द पिघले तो न बहने लगे आँखों से कहीं
दिल के ज़ख़्मों को ख़बरदार किया है मैंने
उसकी रुसवाई6 न हो…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 26, 2016 at 1:30am — 5 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2016 at 9:59pm — 6 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 12, 2016 at 12:36pm — 11 Comments
क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा
वो वफ़ा की बात करके बेवफ़ा हो जाएगा
रास्ता पुरख़ार है या मौसमे गुल से भरा
जब भी निकलोगे सफ़र में सब पता हो जाएगा
रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी
रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा
धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब
दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा
कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर
शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा
अपने…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 6, 2016 at 11:56pm — 14 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 29, 2016 at 10:00am — 8 Comments
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 25, 2016 at 12:30pm — 1 Comment
मुहब्बत की डगर में फिर किसी का हो के देखूँ
किसी की झील सी आँखों में फिर से खो के देखूँ
अब इन आँखों से उसके प्यार का चश्मा उतारूँ
जहां में हैं बहुत से रंग आँखें धो के देखूँ
जिसे मैं प्यार करता था वो मेरा हो न पाया
जो मुझसे प्यार करता है मैं उसका हो के देखूँ
बहुत दिन हो गए आँखों को कोई ख़्वाब देखे
चलो शानो पे सर रख कर किसी के सो के देखूँ
कोई तो बढ़ के 'सूरज' आँसुओ को पोछ लेगा
मुहब्बत में चलो इक…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 22, 2015 at 11:00pm — 8 Comments
मुझको तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
तन्हाइयों की भीड़ में खोने नहीं दिया
चाहा तो बार बार के हो जाऊँ बेवफ़ा
लेकिन तुम्हारे प्यार ने होने नहीं दिया
अब तो धुंवाँ धुंवाँ सी हुई मेरी ज़िंदगी
जलने दिया न, राख़ भी होने नहीं दिया
लब पे सजा लिए हैं तवस्सुम की झालरें
एहसास ग़म का दुनिया को होने नहीं दिया
आँखों में अश्क आप की आ जाएँ ना कहीं
इस डर से अपने आप को रोने नहीं दिया
अपना सका मुझे न…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 9, 2015 at 11:30pm — 9 Comments
ज़िंदगी का रंग फीका था मगर इतना न था
इश्क़ में पहले भी उलझा था मगर इतना न था
क्या पता था लौटकर वापस नहीं आएगा वो
इससे पहले भी तो रूठा था मगर इतना न था
दिन में दिन को रात कहने का सलीका देखिये
आदमी पहले भी झूठा था मगर इतना न था
अब तो मुश्किल हो गया दीदार भी करना तिरा
पहले भी मिलने पे पहरा था मगर इतना न था
उसकी यादों के सहारे कट रही है ज़िंदगी
भीड़ में पहले भी तन्हा था मगर इतना न…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 15, 2015 at 2:00pm — 19 Comments
कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है
यहाँ जो दिखता है वो दोस्तों होता नहीं है
जो कुछ पाया ज़माने की नज़र में था हमेशा
गंवाया जो उसे इस दुनिया ने देखा नहीं है
गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने
दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है
मुझे मालूम है इक दिन जुदा होना है सबको
मगर ऐसे भी कोई दूर तो जाता नहीं है
मुहब्बत के सफ़र में हमसफ़र जितने थे मेरे
कोई भी साथ थोड़ी दूर चल पाया नहीं…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2014 at 12:37am — 10 Comments
इक उसके चले जाने से कुछ पास नही है
ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है
वो दूर गया जब से ये बेजान है महफिल
साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है
सुनने को तिरे पास भी जब वक़्त नही तो
कहने को मिरे पास भी कुछ ख़ास नहीं है
इस रूह के आगोश में है तेरी मुहब्बत
माना के तिरा प्यार मिरे पास नही है
रावण तो ज़माने में अभी ज़िंदा रहेगा
क़िस्मत में अभी राम के बनवास नही है
फिर कैसे यक़ी तुझपे करेगा ये ज़माना,
ख़ुद तुझको…
Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 18, 2014 at 11:30pm — 21 Comments
बेघर हुए हैं ख़्वाब धमाकों के साथ साथ।
वहशत भी ज़िंदा रहती है साँसों के साथ साथ॥
जब रौशनी से दूर हूँ कैसी शिकायतें,
अब उम्र कट रही है अँधेरों के साथ साथ॥
दरिया को कैसे पार करेगा वो एक शख़्स,
जिसने सफ़र किया है किनारों के साथ साथ॥
वीरान शहर हो गया जब से गया है तू,
हालांकि रह रहा हूँ हजारों के साथ साथ॥
पत्ता शजर से टूट के दरिया पे जो गिरा,
आवारा वो भी हो गया मौजों के साथ…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 24, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
फ़ुर्कत की आग दिल में लिए जल रहा हूँ मैं।
यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं॥
आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,
इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥
संजीदा कब हुआ है मुहब्बत में तू मेरी,
हरदम तेरी नज़र में तो पागल रहा हूँ मैं॥
तू तो भुला के मुझको बहुत दूर हो गया,
तन्हाइयों के बीच मगर पल रहा हूँ मैं॥
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 18, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
आशियाने दिल में आख़िर आजकल ठहरा है कौन।
रात दिन मेरे ख़यालो-ख़्वाब में रहता है कौन॥
किसके आने से हुई गुलज़ार दिल की वादियाँ,
हर तरफ मंज़र बहारों का लिए बैठा है कौन॥
चेहरे पे चेहरा लगाए फिर रहा है आदमी,
है बहुत मुश्किल बताना सच्चा है झूठा है कौन॥
कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,
सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥
है यकीं उसको यहाँ पे आने वाली है बहार,
वरना वीराने चमन…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 8, 2013 at 8:00am — 16 Comments
इक शख़्स इस हयात का नक़्शा बदल गया।
दिल के चमन का रंगो बू सारा बदल गया॥
सोचा था अब न प्यार करेगा किसी से दिल,
उससे मिला तो सारा इरादा बदल गया॥
महफिल में हो रही थी उसी की ही गुफ़्तगू,
देखा उसे तो सबका ही चेहरा बदल गया॥
जबसे उसे सहारा किसी और का मिला,
उस दिन से बातचीत का लहज़ा बदल गया॥
अब रात दिन ख़यालों में ख़्वाबों में है वही,
अंदाज़ मेरे जीने का सारा बदल गया॥
आए गए हज़ार मगर कुछ नहीं…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on October 25, 2013 at 1:00am — 16 Comments
मुझको अब एक ख़्वाब समझने लगे हैं आप।
सूखा हुआ गुलाब समझने लगे हैं आप॥
यूं लखनऊ में रहके गुजारे जो चार दिन,
अपने को अब नवाब समझने लगे हैं आप॥
तस्वीर पर ज़रा सी जो तारीफ़ हो गयी,
अपने को माहताब समझने लगे हैं आप॥
दो चार जुगनुओं से ज़रा दोस्ती हुई,
अपने को आफ़ताब समझने लगे हैं आप॥
घर से निकल के आप जो सड़कों पे आ गए,
उसको ही इंकलाब समझने लगे हैं आप॥
दो चार ज़िंदगी में ग़लत लोग क्या…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on September 4, 2013 at 1:00am — 10 Comments
जब कभी अम्न की तदबीर नई होती है॥
हर तरफ जंग की तस्वीर नई होती है॥
ख़त्म कर देती है सदियों की पुरानी रंजिश,
वक़्त के हाथ में शमशीर नई होती है॥
पहले होते हैं यहाँ क़त्ल धमाके…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 30, 2013 at 1:37am — 8 Comments
वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥
मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥
बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।
हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥
दिलों के बीच मुहब्बत के गुल खिलाता गया,
जहाँ- जहाँ से भी गुजरा है काफ़िला अपना॥
हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,
ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥
कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,
बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥
ये चंद साँसे भी…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on July 15, 2013 at 1:00am — 8 Comments
सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत॥
मुसाफ़िरों के भी पावों में आबले हैं बहुत॥
ख़ुदा ही जाने मिलेगी किसे किसे…
ContinueAdded by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 19, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
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