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मुझको तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया

मुझको तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया

तन्हाइयों की भीड़ में खोने नहीं दिया

 

चाहा तो बार बार के हो जाऊँ बेवफ़ा

लेकिन तुम्हारे प्यार ने होने नहीं दिया

 

अब तो धुंवाँ धुंवाँ सी हुई मेरी ज़िंदगी

जलने दिया न, राख़ भी होने नहीं दिया

 

लब पे सजा लिए हैं तवस्सुम की झालरें

एहसास ग़म का दुनिया को होने नहीं दिया

 

आँखों में अश्क आप की आ जाएँ ना कहीं

इस डर से अपने आप को रोने नहीं दिया

 

अपना सका मुझे न किसी और का हुआ

मुझको किसी भी और का होने नहीं दिया

 

'सूरज' जो हमने देखा मुहब्बत में एक ख़्वाब

पूरा उसे ज़माने ने होने नहीं दिया

 

डॉ सूर्या बाली 'सूरज'

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 22, 2015 at 11:25pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सत्विन्दर कुमार जी, कांता जी, अजय शर्मा जी, धर्मेंद्र जी, मेहता जी, समर जी, लक्ष्मण जी आप सभी का टहे दिल से शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 14, 2015 at 11:43am

भाई सूरज जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l

Comment by Samar kabeer on December 14, 2015 at 10:58am
जनाब सूरज साहिब शानदार ग़ज़ल है,मुबारकबाद क़ुबूल करें |
Comment by जयनित कुमार मेहता on December 13, 2015 at 6:35pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय सूरज जी।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 13, 2015 at 2:57pm

बहुत ख़ूब आ. बाली साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद कुबूल कीजिए।

Comment by Ajay Kumar Sharma on December 12, 2015 at 12:09pm

बहुत सुन्दर गजल सूर्या साहब। बधाई स्वीकार करें।

Comment by kanta roy on December 11, 2015 at 12:00pm
मुझको तुम्हारी याद ने सोने नहीं दिया
तन्हाइयों की भीड़ में खोने नहीं दिया..... वाह !!!! तन्हाईयों की भीड़ .... उम्दा ! बहुत बहुत बधाई आपको बेहतर गजल के लिए आदरणीय डाॅट्स सूर्या बाली जी ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 10, 2015 at 6:54pm
वह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह्।उम्दा ग़ज़ल।बधाई आदरणीय
Comment by Shyam Narain Verma on December 10, 2015 at 1:09pm
लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई आपको

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