For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आशियाने दिल में आख़िर आजकल ठहरा है कौन

आशियाने दिल में आख़िर आजकल ठहरा है कौन।

रात दिन मेरे ख़यालो-ख़्वाब में रहता है कौन॥

 

किसके आने से हुई गुलज़ार दिल की वादियाँ,

हर तरफ मंज़र बहारों का लिए बैठा है कौन॥

 

चेहरे पे चेहरा लगाए फिर रहा है आदमी,

है बहुत मुश्किल बताना सच्चा है झूठा है कौन॥

 

कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,

सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥

 

है यकीं उसको यहाँ पे आने वाली है बहार,

वरना वीराने चमन में बेसबब आता है कौन॥

 

मुश्किलों के दौर तो रहते हैं मौसम की तरह,

शर्त है इन मौसमों में देर तक टिकता है कौन॥

 

झूठ के पत्थर से जो टकराया सच का आईना,

है ज़रा मुश्किल समझना दोनों में टूटा है कौन॥

 

आ रहे होंगे इलेक्शन मुझको लगता है क़रीब,

वरना इतनी सादगी से आजकल मिलता है कौन॥

 

सब यहीं रह जाता है अच्छा बुरा ऐ दोस्तों,

ज़र ज़मीं जागीर लेकर साथ में जाता है कौन॥

 

नूर से किसके हैं रौशन चाँद तारे कहकशां,

रंगो बू गुलशन के फूलों में यहाँ भरता है कौन॥

 

उसको भी होगी जरूरत रौशनी की धूप की,

वरना इतनी देर तक “सूरज” को सह पाता है कौन॥

 

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 836

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on June 8, 2016 at 3:07pm

आ रहे होंगे इलेक्शन मुझको लगता है क़रीब,

वरना इतनी सादगी से आजकल मिलता है कौन॥

सब यहीं रह जाता है अच्छा बुरा ऐ दोस्तों,

ज़र ज़मीं जागीर लेकर साथ में जाता है कौन॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 13, 2013 at 11:12pm

ये हुई न बात भाईजी ! सीधे सादे शब्दों में क्या नहीं कह दिया !
दिल से दाद कुबूल कीजिये.

और इन अश’आर पर दादपर दाद लीजिये.. .

है यकीं उसको यहाँ पे आने वाली है बहार,
वरना वीराने चमन में बेसबब आता है कौन॥

झूठ के पत्थर से जो टकराया सच का आईना,
है ज़रा मुश्किल समझना दोनों में टूटा है कौन॥

उसको भी होगी जरूरत रौशनी की धूप की,
वरना इतनी देर तक “सूरज” को सह पाता है कौन॥

दिल खुश कर दिया आपने.
बधाई बधाई बधाई

Comment by बसंत नेमा on November 11, 2013 at 12:28pm

आ रहे होंगे इलेक्शन मुझको लगता है क़रीब,

वरना इतनी सादगी से आजकल मिलता है कौन॥

उसको भी होगी जरूरत रौशनी की धूप की,

वरना इतनी देर तक “सूरज” को सह पाता है कौन॥

आँखो से दिल मे उतर जाये जो ..ऐसी गजल आज कल कहता है कौन .... आ . सूरज जी  बहुत खूब  बधाई शुभकामनाये 

Comment by Parveen Malik on November 11, 2013 at 11:49am
मुश्किलों के दौर तो रहते हैं मौसम की तरह,
शर्त है इन मौसमों में देर तक टिकता है कौन॥

झूठ के पत्थर से जो टकराया सच का आईना,
है ज़रा मुश्किल समझना दोनों में टूटा है कौन॥


बेहद उम्दा लाजवाब गजल हमेशा की तरह ... बधाई डॉ साहब !
Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 9:43pm

बहुत ख़ूब 
.

झूठ के पत्थर से जो टकराया सच का आईना,

है ज़रा मुश्किल समझना दोनों में टूटा है कौन..... वाह वाह और वाह 

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:04pm

किसके आने से हुई गुलज़ार दिल की वादियाँ,

हर तरफ मंज़र बहारों का लिए बैठा है कौन॥

 

चेहरे पे चेहरा लगाए फिर रहा है आदमी,

है बहुत मुश्किल बताना सच्चा है झूठा है कौन॥/////////////वाह  वाह  बहुत खूब 

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल हुई  है आदरणीय सूरज भाई जी…बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 10, 2013 at 1:00pm

आदरणीय सूरज भाईजी, वाह...वाह...क्या कहने!...

---------------------------//झूठ के पत्थर से जो टकराया सच का आईना,

है ज़रा मुश्किल समझना दोनों में टूटा है कौन॥//

...... -----------------------सुन्दर गजल प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 10, 2013 at 11:50am

आदरणीय बाली जी ..पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है ...पर इन दो शेरो के लिए बिशेष रूप से बधाई कबूलें ..

कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,

सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥

 

है यकीं उसको यहाँ पे आने वाली है बहार,

वरना वीराने चमन में बेसबब आता है कौन॥

 सादर बधाई के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 9:41am

वाह !!! आदरणीय सूर्याबाली जी, बेहतरीन ग़ज़ल सुनने को मिली. 

कुछ न कुछ तो ख़ामियाँ मुझमें भी हैं तुझमें में भी हैं,

सबकी नज़रों में यहाँ तुम ही कहो अच्छा है कौन॥

 

हम इस अश'आर पर फ़िदा हो गए ........................ 

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 8:39pm

वाह वाह.... इस शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई आ0 बाली जी.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
6 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service