For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इक शख़्स इस हयात का नक़्शा बदल गया

इक शख़्स इस हयात का नक़्शा बदल गया।

दिल के चमन का रंगो बू सारा बदल गया॥

सोचा था अब न प्यार करेगा किसी से दिल,

उससे मिला तो सारा इरादा बदल गया॥

महफिल में हो रही थी उसी की ही गुफ़्तगू,

देखा उसे तो सबका ही चेहरा बदल गया॥

जबसे उसे सहारा किसी और का मिला,

उस दिन से बातचीत का लहज़ा बदल गया॥

अब रात दिन ख़यालों में ख़्वाबों में है वही,

अंदाज़ मेरे जीने का सारा बदल गया॥

आए गए हज़ार मगर कुछ नहीं हुआ,

इक वो चला गया तो ज़माना बदल गया॥

जिसको समझ रहे थे कि बदलेगा न कभी,

पहचानता नहीं है अब ऐसा बदल गया॥

हमराज़ हमसफ़र भी थे मंज़िल भी एक थी,

आया इक ऐसा मोड़ कि रस्ता बदल गया॥

“सूरज” किसी से प्यार अगर मांगना पड़े,

समझो वहीं पे प्यार का रिश्ता बदल गया॥

डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”

( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 901

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on November 3, 2013 at 12:16am

वीनस भाई वो लहजा है ...काश यहाँ पर एडिट करने की व्यवस्था होती 

Comment by वीनस केसरी on November 3, 2013 at 12:11am

भाई जी बहुत प्यारी ग़ज़ल कही है मगर आपको कई मिसरों पर फिर से काम करना पड़ेगा

एक बात - लहजा / लहज़ा  में बहुत बड़ा अंतर है इसे स्पष्ट कर लीजिए

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 27, 2013 at 6:34pm

“सूरज” किसी से प्यार अगर मांगना पड़े,
समझो वहीं पे प्यार का रिश्ता बदल गया॥"-------------------------वाह बहुत खुब आदरणीय सूरजजी बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2013 at 11:32am

लाजवाब ग़ज़ल के लिए बधाई मान्यवर 

Comment by vijay nikore on October 26, 2013 at 6:27pm

इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

Comment by शरद कुमार on October 26, 2013 at 12:43pm
लाजवाब ग़ज़ल काही है बाली जी........एक एक शेर खूबसूरत ...... यह कहना मुश्किल है की कौन सा ज्यादा अच्छा है......... फिर भी ये दो बहुत ही पसंद आए :

"आए गए हज़ार मगर कुछ नहीं हुआ,
इक वो चला गया तो ज़माना बदल गया॥"

“सूरज” किसी से प्यार अगर मांगना पड़े,
समझो वहीं पे प्यार का रिश्ता बदल गया॥"
Comment by Sushil.Joshi on October 26, 2013 at 7:34am

आए गए हज़ार मगर कुछ नहीं हुआ,

इक वो चला गया तो ज़माना बदल गया.......  बहुत खूबसूरत आदरणीय डॉ बाली जी......बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिए...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2013 at 10:16pm

बढिया ग़ज़ल हुई है, डॉक्टर साहब. बधाइयाँ और शुभकामनाएँ..

कुछ अरसे बाद आये हैं मग़र दुरुस्त आये हैं. :-))

जिसको समझ रहे थे कि बदलेगा न कभी,......   इस मिसरे को जरा देख लें प्लीज.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 25, 2013 at 7:08pm

सूर्या बालीजी बधाई , सुंदर गज़ल कही।

Comment by ram shiromani pathak on October 25, 2013 at 4:56pm

जिसको समझ रहे थे कि बदलेगा न कभी,

पहचानता नहीं है अब ऐसा बदल गया॥

हमराज़ हमसफ़र भी थे मंज़िल भी एक थी,

आया इक ऐसा मोड़ कि रस्ता बदल गया॥............वाह क्या कहने 

आदरणीय सूर्य बाली भाई,बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है /////हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
8 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service