फ़ुर्कत की आग दिल में लिए जल रहा हूँ मैं।
यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं॥
आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,
इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥
संजीदा कब हुआ है मुहब्बत में तू मेरी,
हरदम तेरी नज़र में तो पागल रहा हूँ मैं॥
तू तो भुला के मुझको बहुत दूर हो गया,
तन्हाइयों के बीच मगर पल रहा हूँ मैं॥
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥
यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,
एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥
“सूरज” जो उग रहा है सलामी मिले उसे,
पूछेगा मुझको कौन अभी ढल रहा हूँ मैं॥
डॉ सूर्या बाली “सूरज”
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
शानदार गज़ल के लिए, आदरणीय सूर्या बाली जी बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय डॉ० सूर्या बाली जी
आपकी ग़ज़ल के अशआर ज़िंदगी को जिस संवेदना से जीते हैं... उसपर बस मन मुग्ध हो जाता है... शेर दर शेर ग़ज़ल को पढ़ते जाना एक एहसास बन जाता है
आ जा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,
इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥...................बहुत सुन्दर
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥...........क्षमा कीजियेगा एक संशय है ....क्या इस शेर में शुतुर्गुर्बा का ऐब बन रहा है?....
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर पेशकश पर
सादर.
यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,
एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥
वाह्ह्ह बहुत उम्दा शेर ,पूरी ग़ज़ल ही शानदार है दाद कबूल कीजिये ....... पर ...हाँ क्यूँकि को सोल्व कीजिये
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥
यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,
एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥.... वाह वाह क्या बात है आदरणीय डॉ साहब ..हर बार की तरह लाजवाब ... बधाई स्वीकार करें
डॉक्टर साहब, कमाल की आह निकली है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकार कीजिये.
कई शेर हैं जो दिल को न केवल छू गये हैं, बल्कि देर तक सिहरन होते जाने का कारण बने हैं.
इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद
एक बात :
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं.. . .. बह्र त निभ गयी पर इस क्यूँकि को क्या कर दिया आपने ? .. :-)))
शुभ-शुभ
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली बधाईयाँ,,,,,,,,,,,,,,
“सूरज” जो उग रहा है सलामी मिले उसे,
पूछेगा मुझको कौन अभी ढल रहा हूँ मैं॥
किस वास्ते इतरा रहा है आज पे ऐ दोस्त
तू झाँक गिरेबाँ में,तेरा कल रहा हूँ मैं...........
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥................. बहुत सुंदर , बधाई आपको ।
बहुत सुंदर भाव आ0 सूरज जी शानदार अभिव्यक्ति ... सादर.....
अच्छे भाव ,
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥..ये शेर इस ग़ज़ल का मेरा पसंदीदा शेर है ..
यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,
एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥....तेरी का प्रयोग थोडा खल रहा है ..बैसे बिद्वत जन ज्याद बेहतर बताएँगे ,,सादर
बहुत ख़ूब
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