वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥
मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥
बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।
हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥
दिलों के बीच मुहब्बत के गुल खिलाता गया,
जहाँ- जहाँ से भी गुजरा है काफ़िला अपना॥
हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,
ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥
कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,
बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥
ये चंद साँसे भी हैं मौत से उधार मिली,
यहाँ पे कुछ भी नहीं दोस्त आपका अपना॥
हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,
नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥
किसी की ज़ुल्फ मेरे रुख़ पे हवा करती रही,
किसी की सानों पे सर रातभर रहा अपना॥
मुझे तो अपने ही कदमों का बस भरोसा है,
न हमसफ़र न ये मंज़िल न रास्ता अपना॥
बस आंखमूद के सबको गले लगाता हूँ,
हर एक बशर में मुझे दिखता है ख़ुदा अपना॥
शरर से आग से “सूरज” से बच गया लेकिन,
कली से फूल से तितली से दिल जला अपना॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
वाह वाह क्या कहने हर शेर नायाब डॉ साहब ! ग़ज़लगोई को मुकाम मिला है ..उम्दा और ऊँचा ...एक एक शेर की भावभूमि अपनी मजबूती की मिसाल है --
बड़े खुलूस से तुझको है मशवरा अपना।
हर एक शख़्स को देना नहीं पता अपना॥
हार्दिक बधाई स्वीकारें इस प्रस्तुति पर !
हम एक दूजे से चुपचाप हो गए है अलग,
ज़रा सी बात पे टूटा है सिलसिला अपना॥
कुछ इस अदा से दिखा के वो चाँद सा चेहरा,
बस एक पल में दिवाना बना गया अपना॥
ये चंद साँसे भी हैं मौत से उधार मिली,
यहाँ पे कुछ भी नहीं दोस्त आपका अपना॥
हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,
नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥
जिंदाबाद भाई जिंदाबाद
क्या कमाल बेमिसाल शाइरी है ...
पोस्ट पर देर से आ सका इसके लिए अफ़सोस है
डॉक्टर् साहब, कमाल कमाल ! इस ग़ज़ल पर मेरी भी दाद कुबूल करें
आदरणीय डॉ. सूर्या बाली जी सादर बहुत खुबसूरत गजल सभी शेर बहुत उम्दा हैं और मुझे तो साहब मक्ता बड़ा ही पसंद आया है.बहुत बहुत दाद कुबूल फरमाएं.
बहुत शानदार गज़ल आदरणीय डॉ० सूर्या बाली जी
हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,
नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥
बस आंखमूद के सबको गले लगाता हूँ,
हर एक बशर में मुझे दिखता है ख़ुदा अपना॥
इन दो शेरों के होने पर विशेष बधाई
सादर.
वफ़ा कि राह में सब कुछ लुटा दिया अपना॥
मगर न बदला मुहब्बत का फलसफ़ा अपना॥............क्या कहने ....
ये चंद साँसे भी हैं मौत से उधार मिली,
यहाँ पे कुछ भी नहीं दोस्त आपका अपना॥....... वास्तविकता यही है .....
हमें तो घर के चरागों से ही मुहब्बत है,
नहीं है चांद सितारों से वास्ता अपना॥...... बहुत खूब
डॉ. सूर्या बाली सूरज जी किस किस शेर की तारीफ करें सब एक से बढ़कर एक हैं ।
बहुत बढ़िया है आदरणीय-
आभार आपका-
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