कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है
यहाँ जो दिखता है वो दोस्तों होता नहीं है
जो कुछ पाया ज़माने की नज़र में था हमेशा
गंवाया जो उसे इस दुनिया ने देखा नहीं है
गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने
दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है
मुझे मालूम है इक दिन जुदा होना है सबको
मगर ऐसे भी कोई दूर तो जाता नहीं है
मुहब्बत के सफ़र में हमसफ़र जितने थे मेरे
कोई भी साथ थोड़ी दूर चल पाया नहीं है
अज़ब है कश्मकश दिल की ज़ुदा होके भी तुमसे
कहाँ जाऊँ किधर जाऊँ समझ आता नही है
तुम्हारे बाद भी आए बहुत से लोग लेकिन
मेरे दिल के करीब इतना कोई आया नहीं है
दग़ा मक्कारी धोका झूठ तेरी बेवफ़ाई
समझता है मेरा दिल भी कोई बच्चा नहीं है
मेरा हँसना तो देखा है सभी ने खूब ‘सूरज’
मगर तनहाई में रोता हुआ देखा नहीं है
डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
डॉक्टर साहब इस ग़ज़ल के कई शेर मसल की तरह प्रयोग किये जाने योग्य हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
और, मंच पर आपकी आमद .. साहब आँखें जुड़ा गयीं.
शुभ-शुभ
गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने
दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है- वाह ! दिल की सच्चाई बयाँ जो की है, इसमें शक हमें करना नहीं है
दग़ा मक्कारी धोका झूठ तेरी बेवफ़ाई
समझता है मेरा दिल भी कोई बच्चा नहीं है | - वाह ! वाह ! और वाह !
उम्दा गजल रचना के लिए शुक्रिया डॉ सूर्या बाली "सूरज" साहब
गोपाल जी, लक्ष्मण जी, राजेश कुमारी जी, अभिनव जी जितेंद्र जी गिरिराज जी आप सभी तहे दिल से शुक्रिया ! थोड़ा मशरूफ़ियत है आजकल ज़िंदगी में लेकिन जल्दी ही मंच पर फिर से वापस आऊँगा पहले की तरह । आप सब अपना स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखिए! आभार!
दग़ा मक्कारी धोका झूठ तेरी बेवफ़ाई
समझता है मेरा दिल भी कोई बच्चा नहीं है
मेरा हँसना तो देखा है सभी ने खूब ‘सूरज’
मगर तनहाई में रोता हुआ देखा नहीं ------- बहुत बहुत बधाइयाँ आदरणीय, लाजवाब ग़ज़ल के लिए ॥
तुम्हारे बाद भी आए बहुत से लोग लेकिन
मेरे दिल के करीब इतना कोई आया नहीं है..........वाह ! बहुत सुंदर ख्याल
बहुत सुंदर गजल कही आपने, दिली बधाई लीजियेगा आदरणीय डा.सूर्या साहब
बेहतरीन गज़ल वाहहहहहहह
ढेरों दाद कबूलें आ० बाली जी ,बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल ओबिओ पटल पर आई है क्या खूब लिखा है ..बहुत खूबसूरत मुसल्सल ग़ज़ल हुई है,हर अशआर प्रभावित कर रहा है किसी एक की क्या बात करूँ |इस ग़ज़ल को पढ़कर दो बातें दिल में आई सो साझा करना चाहूंगी ---मतले के सानी में --यहाँ जो दिख रहा वो दोस्तों होता नहीं है ,या यहाँ जो देखते वो दोस्तों होता नहीं है ----करें तो ??
मकते में ----तेरा हँसना तो देखा है करें तो ?? ये सिर्फ मेरी सोच भर है कृपया अन्यथा न लें ..आप जैसे ग़ज़ल कार के सम्मुख मेरा ज्ञान तो गौण है |
आ० बाली जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है इसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .
बाली जी
बहुत अच्छी गजल कही आपने i आपको शत -शत बधाई i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online