For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी ही हो गयी क़ातिल करूँ तो क्या करूँ

हो गया दिल इश्क़ में बिस्मिल करूँ तो क्या करूँ
ज़िंदगी ही हो गयी क़ातिल करूँ तो क्या करूँ

इक तेरे दर के सिवा लगता नहीं है दिल कहीं
रास आती है नहीं महफिल करूँ तो क्या करूँ

तू ही साँसों में है धड़कन मे ख़यालों में है तू
बस तुम्ही को चाहता है दिल करूँ तो क्या करूँ

लीक से हटकर अलग चलने की है फ़ितरत मिरी
भीड़ में होता नहीं शामिल करूँ तो क्या करूँ

इक तेरे जाने से रस्ते हो गए मुश्किल मिरे
दूर अब लगने लगी मंज़िल करूँ तो क्या करूँ

आज तक चलता रहा राहे सदाक़त पर मगर
राह आगे लगती है मुश्किल करूँ तो क्या करूँ

आज में जीने का 'सूरज' फलसफा अपना लिया
कोई माज़ी है न मुस्तकबिल करूँ तो क्या करूँ

डॉ सूर्या बाली 'सूरज'
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 513

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2016 at 11:19am

बहुत शानदार उम्दा ग़ज़ल आ० बाली जी दिल से दाद हाजिर है |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2016 at 9:53am

आदरणीय डॉ बाली जी ,,हर शेर उम्दा हैआज में जीने का 'सूरज' फलसफा अपना लिया
कोई माज़ी है न मुस्तकबिल करूँ तो क्या करूँ....वाह ..इस बेहतरीन रचना ..इस रवानगी के लिए ह्रदय से बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by narendrasinh chauhan on March 30, 2016 at 4:09pm

खूबसूरत  ग़ज़ल ,  बहुत मुबारकबाद

Comment by नादिर ख़ान on March 30, 2016 at 11:39am

आदरणीय डॉ  सूर्या बाली जी ग़ज़ल की रवानगी देखते ही बनती है,  खूबसूरत  ग़ज़ल के लिए बहुत मुबारकबाद। .... 

Comment by रामबली गुप्ता on March 30, 2016 at 9:42am
शानदार ग़ज़ल आ.बाली जी। दिली दाद कुबूल फरमाएं।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 29, 2016 at 10:03pm
बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय सूर्या बाली जी। दाद कुबूल करें
Comment by Sushil Sarna on March 29, 2016 at 7:43pm

हो गया दिल इश्क़ में बिस्मिल करूँ तो क्या करूँ
ज़िंदगी ही हो गयी क़ातिल करूँ तो क्या करूँ

इक तेरे दर के सिवा लगता नहीं है दिल कहीं
रास आती है नहीं महफिल करूँ तो क्या करूँ

वाह आदरणीय डॉ. सूरज बाली जी वाह बड़े ही खूबसूरत अहसासों को आपने अपनी ग़ज़ल में सजाया है। दिली मुबारक बाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2016 at 6:29pm

बधाई इस ग़ज़ल के लिए 
तू ही साँसों में है धड़कन मे ख़यालों में है तू
बस तुम्ही को चाहता है दिल करूँ तो क्या करूँ.. इसे फिर देख लें,, शतुर्गुरबा नुमाया है ...तुम्ही को तुझी करने से शायद ठीक हो सके 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service