For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीन कह-मुकरियाँ

(एक अभिनव प्रयोग)

 

खुसरो की बेटी कहलाये

भारतेंदु संग रास रचाये

कविजन सारे जिसके प्रहरी

क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!

 

बांच जिसे जियरा हरषाये

सोलह मात्रा छंद सुहाये

पुलकित नयना बरसे बदरी

क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!

 

चैन चुराये दिल को भाये 

चिर-आनंदित जो कर जाये

मन की कहती फिर भी मुकरी!

क्या वह सजनी? नहिं कह-मुकरी!

--अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 2648

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 19, 2012 at 7:32pm

आदरणीय भाई जी,

अपने अंदाज़ में कह-मुकरियों की लाजवाब पेशकश की आपने| मुकरी के प्रणेता और उसे पुनः प्रतिष्ठा प्रदान करने वाले दोनों महानुभावों को नमन है| सादर,

Comment by Arun Sri on July 19, 2012 at 1:39pm

सौरभ सर , हालाँकि आपके आलेख में स्पष्ट लिखा है कि //प्रथम  तीन वर्णन-पंक्तियों के माध्यम से साजन या प्रियतम या पति के विभिन्न रूप परिलक्षित होते हैं//
यहाँ थोड़ी भिन्नता देखी तो पूछ लिया ! :-))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 1:13pm

इस प्रश्न से सम्बन्धित इसी मंच पर कई चर्चा-परिचर्चाएँ हो चुकी हैं. 

’का सखि साजन’ के अलावे शायद ही अन्य प्रश्न सामने आ पाया है.  ’साजन’ को वाराणसी शैली में ’सज्जन’ जरूर किया गया है, ऐसे भी उदाहरण हैं. लेकिन अन्य ’बूझ’ का उदाहरण नहीं आ पाया है. 

अन्य प्रश्न, जैसा कि यहाँ प्रयुक्त हुए हैं, वे प्रासंगिक भर हैं.  अन्यथा भर.

Comment by Arun Sri on July 19, 2012 at 12:56pm

बहुत बढ़िया कह मुकरियाँ ! लेकिन कह मुकरी को "का सखी साजन" के प्रारूप के अलावा भी किसी भी रूप में लिखा जा सकता है  या इसे नई शुरुआत समझा जाए ?

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:11pm

बहुत खूब आदरणीय सौरभ जी !

हँसती ’दोअर्थी’  कह-कह कर
करे इशारे  तिर्यक अक्सर
बढ़े न खुलके, चलती सँकरी
का वो तिरिया ? ना ’कह-मुकरी’ ...... --सौरभ पाण्डेय


वाह वाह वाह  .क्या बात है ..... हार्दिक बधाई मित्रवर .......:-))))

दो अर्थी है जिसकी वाणी

मुकरे निज से हँस कल्याणी

जीवन रस की छलके गगरी

जीवन साथी? नहिं कह-मुकरी!

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:06pm

आदरेया सीमा जी, आप जैसी विदुषी की सराहना पाकर यह सृजन धन्य हो उठा है ! अतएव आपके प्रति  हार्दिक आभार ज्ञापित कर रहा हूँ ! सादर

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:04pm

धन्यवाद भ्राता  अरुण जी !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 12:03pm

//अधरों पर मुस्कान जगाए 

गुप-चुप दिल के भेद बताए

है वो एक रहस्मय खबरी!

क्या सखी सजना? न न कह-मुकरी!//

सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरेया डॉ० प्राची जी, प्रतिक्रिया में अति सुंदर कह मुकरी रची है आपने......साधुवाद ....

इससे प्रेरित होकर एक और कह-मुकरी उपजी है ....  

हम पर उसका पूरा हक रे

नैनों से कह उससे मुकरे

चलती तिरछी राहें सँकरी  

क्या वह सजनी? नहिं कह मुकरी!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 19, 2012 at 11:18am

सम्यक कहा आदरणीय अम्बरीषभाईजी.  बहुत खूब !

आपही के स्वर में हम सुर लगायें - 

हँसती ’दोअर्थी’  कह-कह कर
करे इशारे  तिर्यक अक्सर
बढ़े न खुलके, चलती सँकरी
का वो तिरिया ? ना ’कह-मुकरी’ .. ....  हा हा हा हा .........



कह-मुकरी पर एक आलेख भी चस्पां है इन्हीं पन्नो पर.
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:153703

सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 11:00am

वाह भ्राताश्री बेहद खुबसूरत कह-मुकरियां, बहुत - बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
33 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service