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मेरे पांच क़तात

तन्हा सफ़र

दिन मुसीबत के टल नहीं सकते ,

हम भी किस्मत बदल नहीं सकते .

हम तखय्युल को साथ रखते है ,

तुम तो हमराह चल नहीं सकते :


अर्ज़-ऐ-हाल

हम अपनी जान किसी पर निसार कैसे करें ,

तुझे भुला के किसी और से प्यार कैसे करें .

तेरे बिछड़ने से दुनिया उजाड़ गयी दिल की ,

इस उजड़े दिल को अब हम खुशगवार कैसे करें .


जदीदियत

ख्याल उठने से पहले ही सो गए होंगे ,

कुछ अपने हाल -ऐ -तबाही पे रो गए होंगे .

जदीद ज़हन में मैदाने -ऐ -कर्बला की तरह ,

शहीद कितने ही अलफ़ाज़ हो गए होंगे .


वा -बस्तगी

निगाह मिलते ही तुझको सलाम करता हु ,

तेरी नज़र का बड़ा एहतराम करता हु .

मेरी जुबा तेरी गुफ्तार से है वाबस्ता ,

ये कौन कहता है सबसे कलाम करता हु :

मशवरा

हरगिज़ न करना चाहिए इंसान को ग़ुरूर ,

दनिश्वरी के जौम में हो जाते है कुसूर .

मैंने तमाम उम्र किया है सफ़र मगर ,

अब तक ज़मी पे चलने का आया नहीं श -ऊर :

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Comment by Hilal Badayuni on October 8, 2010 at 1:09am
shukriya ganesh bhai

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 7, 2010 at 8:19pm
हम अपनी जान किसी पर निसार कैसे करें ,
तुझे भुला के किसी और से प्यार कैसे करें .

बहुत सही हिलाल भाई, दाद स्वीकार कीजिये ,

कृपया ध्यान दे...

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