कह-मुकरी
मन-मोहक मृदु रूप में आये.
सजे कलाई अति मन भाये.
नेह-प्रीति की वह है साखी.
क्या सखि कंगन? नहिं सखि राखी!!
रूपमाला/मदन छंद
आज वसुधा है खिली ऋतु, पावसी शृंगार.
थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार.
बादलों से वृष्टि रस की, नेह की जलधार.
इन्द्रधनुषी राखियों से, बँध गया संसार..
कुंडलिया
भैया-बहना की हँसी, राखी का त्यौहार.
पावन धागे नेह के, आपस में हो प्यार.
आपस में हो प्यार, दूर हों पथ के काँटे.
प्यार बने आधार, सभी में खुशियाँ बाँटे.
‘अम्बरीष’ है नित्य, सभी से मिलकर रहना.
खिला-खिला संसार, खिले हैं भैया-बहना..
समस्त ओबीओ परिवार की ओर से आप सभी को श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई ! सादर
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
वाह अम्बरीश सर, क्या खूबसूरत प्रस्तुति....बधाई.....
तीनों रचनाएँ बहुत ही सुन्दर हैं ..... ब्रम्हा , विष्णु , महेश . इस पर्व की हार्दिक बधाई मित्रवर
धन्यवाद रेखा जी , आपका हार्दिक स्वागत है .......आपको भी श्रावणी पर्व की हार्दिक बधाई ! सादर
आदरणीय अम्बरीश जी ,आपको रक्षाबन्धन के पर्व की शुभकामनाये औरतीनो ही उत्कृष्ट छन्दों के किये हार्दिक बधाई
आदरणीय लक्ष्मण साहब, सराहना के लिए हार्दिक आभार ....आपको भी श्रावणी पर्व की हार्दिक बधाई ! सादर
छंद सराहे आपने, भाई जी आभार.
स्वागत संजय मित्रवर, सुखद रहे त्यौहार ..सस्नेह
स्वागत है आदरेया राजेश कुमारी जी , छंदों की सराहना के लिए हार्दिक आभार .....आपको भी श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई ! सादर
अवश्य प्रदीप जी ! स्वागतम स्वागतम ! हार्दिक आभार मित्रवर ....आपको श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई ! सादर
स्वागत है आदरणीय भ्रमर जी ! प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ! आपको श्रावणी पर्व (रक्षा बंधन) की हार्दिक बधाई ! सादर
आदरणीय भाई श्री अम्बरीश जी, सादर नमन कह मुकरी, रूपमाला छंद, और कुण्डलिया बहुत सुन्दर भाव लिए उत्कृष्ठ रचनाए,
जो मुझ जैसे को सीखने की द्रष्टि से भी संग्रहनीय |हार्दिक बधाई एवं आभार |
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