न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)
वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?
हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)
नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,
वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)
वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,
मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)
है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,
वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)
भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,
तू अब बेवजह तज़किरा कर रहा है; (६)
भले आज़माइश कड़ी से कड़ी हो,
हमेशा बशर आज़मा कर रहा है; (७)
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; (८)
भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; (९)
***
Comment
आदरणीय लक्ष्मण जी,
मैं भी एक नौसिखिया ही हूँ! और मनुष्य वैसे भी आयुपर्यन्त सीखता-सिखाता ही रहता है! बहरहाल जहाँ तक उस शे'र की बात है तो वह वास्तव में देश की वर्तमान हुकूमत को केंद्रित कर के ही लिखा गया है! आपके क़ीमती वक़्त के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया!
भाई अरुन 'अनंत' जी,
आपकी 'कुछ ज़्यादा ही दाद' सहर्ष क़ुबूल है! :-) धन्यवाद,
आदरणीया रेखा जी,
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ!
आदरणीय सौरभ भईया,
प्रणाम सहित अपना हार्दिक धन्यवाद आपको देता हूँ! आप जैसे सजग-साहित्य मर्मज्ञ से प्रशंसा के चंद शब्द मिलना सदैव ही हर्ष का कारण बनता है! इस मंच पर आने के पश्चात आप लोगों के ही उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के कारण अपने अंदर इतना सुधार ला पाया हूँ! मतले का विचार पिछली सर्दी में चारकोल सुलगाते वक़्त यूँ ही आ गया था! :-)) अपने स्नेहाशीष से सिंचित करने हेतु कृतज्ञता ज्ञापित है! सादर,
आदरणीय अभिनव भईया,
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप है! एक काशीवासी को दूसरे काशीवासी से मिला स्नेह मेरे लिए बहुत ही अहमियत रखता है इसे सहेज कर रख रहा हूँ! सादर,
वीनस जी,
आपकी प्रतिक्रिया पा कर सुखद अनुभूति हुई! मेरे ओबीओ पर आगमन के साथ ही आपने हर क़दम पर मुझे राह दिखाई है शायद यह ग़ज़ल उसी का परिणाम है! माँ शारदे की क्या कहूँ उनकी कृपा तो मुझ पर सदैव ही रही हैकिन्तु मैं अकिंचन उनके आशीर्वाद को पाकर भी अवहेलना कर बैठता हूँ मगर मेरे परिश्रम को देख कर शायद उनका ह्रदय पसीजा और उन्होंने वो 'कुछ' शे'र मुझसे लिखवा लिए! :-)) अगर आप उस दिन मेरे पीछे हाथ धो कर नहीं पड़े होते तो शायद आज ये दिन नहीं आया होता! ;-)
आपका हार्दिक आभार,
संदीप जी , इस अश'आर पर खास तौर से दाद कबूल करें-
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है |
न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है;... अद्भुत... मतला जकड लेता है... साथ ही तमाम शेर गजब है...
बहुत ही उम्दा गजल हुई आदरणीय वाहिद भाई जी... सादर बधाई स्वीकारें...
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है....
संदीप भाई इस शेर के लिए कुछ ज्यादा ही दाद काबुल कीजिये
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