घनाक्षरी :
शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,
ऋतु रंग हरा-भरा, देश को प्रणाम है |
गंगा-यमुना हैं जहाँ, नर्मदा का नेह वहाँ,
पूजें कोटि देव यहाँ, देश को प्रणाम है ||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
धन्यवाद भाई फूल सिंह जी !
श्रीवास्तव जी नमस्कार
अति ही सुंदर प्रस्तुति .........रचना के लिए बधाई
फूल सिंह
स्वागत है आदरेया रेखा जी ! हार्दिक धन्यवाद !
अति सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरनीय अम्बरीश जी
भ्राता नीरज जी, हार्दिक आभार अनुज ! यशस्वी भव!
धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी ! आपकी वाह वाह वाह किसी भी नगीने से कम नहीं है ....सादर
आदरणीय उमाशंकर जी, आपके इस स्नेह के निमित्त आपके प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ ! सादर
वाह वाह वाह ! .. . इसके नीचे कुछ नहीं.
सादर
प्रिय अम्बरीश जी शब्द नहीं है कहने के लिए
हर दृष्टिकोण से लाजवाब है
हार्दिक बधाई
आदरणीय प्रधान संपादक जी ! आपका स्नेहाशीष पाकर मन प्रमुदित हुआ ! स्नेह बना रहे ! सादर .......
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