For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ कही कुछ अनकही (निजी डायरी के कुछ पन्ने)

मानव की प्रवृत्तियाँ क्या हैं? वह क्या चाहता है? क्या पसन्द है उसे? क्या नही पसन्द करता वो? ये सभी बातें उसी पर निर्भर हैं। किन्तु ये नही कहने वाला हूँ मै। कुछ और ही कहना चाहता हूँ।

कुछ लोगों को अच्छे लोग नही भाते बल्कि बुरे लोगो में दिलचस्पी हो जाती है। पता नही कैसा ये मन का रिश्ता है। क्या पता कब, कैसे, किससे जुड़ जाये। इसकी खबर भी नही लगती।

बात ये भी नही कहना चाहता मै लेकिन ये सभी घटनायें कभी न कभी अवश्य ही घटती हैं जीवन मे। इनके पीछे क्या होता है उस समय कोई नही जान सकता। पता तो तब लगता है जब पर्दा उठता है। लेकिन पर्दे के उठने ना उठने से उसे क्या मतलब जो उस क्रिया मे संलयित हो। पर्दा उठने पर तो सामने वाले (दर्शक) ही जानतें हैं किन्तु पात्र तो पहले ही से जानते हैं।  जो तय था उसके अनुसार न करके, परदे को न उठाते हुए कहानी को रोचक बनाने हेतु पात्रों के बारे मे गलत या सही इस प्रकार बता दिया जाय कि सामने वाले उसी बात को सही मान लें। फिर उससे वो हटने का नाम ही न लें। या फिर किसी और ही रूप मे पात्र को कुछ समय के लिये दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाय जो कि उसका असली रूप न हो फिर उस पात्र को नाटक से निकाल दिया जाय। बाद मे उसकी पात्रता को गलत ढंग से पेश कर दिया जाय तो सामने वाले तो केवल उसी गलत बात को तवज्जो देंगे। भले ही वह पात्र चिल्ला कर बताये कि उसके साथ नाईंसाफी हुई है। किन्तु सामने वाला (दर्शक) इस बात को कैसे कबूल कर सकता है, नही करेगा। तब जाकर नाटक के उस अभागे पात्र को पता चलता है कि उसे अपने सही रूप को छोड़कर उस रूप मे नही आना चाहिये था। किन्तु पहले वो क्या कर सकता था। वो जिस डायरेक्टर को अपना भगवान समझ कर उसकी बात मान लिया वही उसके साथ ऐसा करे तो वो क्या करेगा।

 ये सारी घटनायें काल्पनिक नही हैं। सभी घटनायें घटित हैं। मैने आज तक यही जाना था कि जो सत्य है वही सत्य है, ये बात सही होते हुए भी सामने वाला कैसे स्वीकार करेगा। कौन सी उपपत्ती उसके सामने रखी जाये। ये जिन्दगी है। कोई गणित का सवाल नही। गणित के सूत्र तो नही बदलेंगे किन्तु जिन्दगी मे वो सूत्र (लोग) जिनके दम तुम प्रश्नों को हल करने चले हो कहीं वो ही चर (परिवर्तित) हो जायें तो फिर क्या होगा।

जिन्दगी को हल करने का सबसे बड़ा सूत्र है सत्य। लेकिन यह स्वयं मे पूरा नही है। ये हर जगह पर नही लग सकता। इसको लगाने मे कुछ परिस्थितियाँ या कुछ अन्य सूत्रों (लोगों) की जरूरत पड़ती है।मै कोई बात सही कह रहा हूँ तो सामने वाला यही कहेगा कि "नही तुम खुद को बचाने के लिये झूठ बोल रहे हो।" यदि मै ये कहूँ कि मेरी वो बात झूठ थी ये सही है तो सामने वाला कहेगा "वो सही थी, ये गलत है।" तो मै क्या कर सकता हूँ।

जिन्दगी मे ऐसे लोगों से मिलकर कभी किसि का मजा नही लेना चाहिये कि वो उससे मिलकर तु्म्हारा ही मजाक उड़ा दे।

कुछ लोग ऐसे होते हैं कि हमसे मिलकर उनका मजा लेंगे और उनसे मिलकर हमारा। यहाँ ‘हरिशंकर परसाई’ जी का लेख 'निन्दा रस' याद आ रहा है। ऐसे लोगो के साथ रहने मे वाकई मजा आता है। तात्क्षणिक मजा की तो सीमा नही होती।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कि किसी से मिलकर दुसरे के बारे मे कुछ पूछते हैं जिससे कि मजा आये। पहले उसके बारे मे खुद कुछ गलत तिप्पणी करेंगे फिर कसम खायेंगे तुम कुछ उसके बारे मे बताओ मै उससे नही कहुँगा। दूसरा इस बहाव मे बहकर कुछ बता देता है। फिर वही आदमी जिसकी शिकायत पूछे रहता है उसी के सामने  जिससे पूछता है उसकी उपस्थिति मे कहता है कि ये तुम्हारे बारे मे ऐसे-ऐसे कह रहा था। हालांकि सारी बातें सही होती हैं बेदम भी लेकिन कहने का ढंग अनूठा होता है। ऐसा कि एक उसका परम मित्र बन जाय और दूसरे का शत्रु।

पहले वाला तो कुछ हद तक ठीक था किन्तु दूसरा वाला तो पूरा आग ही लगा देता है। ऐसे उदाहरण हमारे जीवन मे मिलते रहते हैं।

इस खोज पर और बातें बाद में…………………………………………………………………………………………..

१७/०२/२००९

Views: 421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service