For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मजबूरी क्यों खून के आंसू पीने की

जिनके लिये हिन्द प्राण से प्यारा था।
सत्य अहिंसा ही बस जिनका नारा था।
तैंतीस कोटि जनो का जो विश्वास था।
जिसमे होता देवों का आभाष था।
जिसने देखे स्वप्न राम के राज की।
उसी हिन्द की दशा हुई क्या आज की।
सत्य बैठ कोने मे सिसकी लेता है।
झूठ हमेशा गीदड़ भभकी देता है।
और अहिंसा बिलख रही लाचार है।
हिंसा उसे नोचने को तैयार है।

सोचें भी तो कैसे हम, ऐसे भारत मे जीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।


राशन की रक्षा मे बैठे गिद्ध हैं।
अपना घर भरने मे जो कि सिद्ध हैं।
जो हर दिन ही लाखों-लाख पचाते हैं।
जो देख ले उसकी आँख चबाते हैं।
गौरैया सी सहमी जनता आज है।
जिसके ऊपर बाजों का ही राज है।
ऐसे तन्त्रों का उल्लू सरदार है।
दिवा-अन्ध के कन्धों पर ही भार है।
बिल्ली से डरता है मन मे मौन है।
सभी जानते हैं वो पट्ठा कौन है।

जहॉं कि रोटी भी ना मिल पाती हो खून पसीने की।
तो मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।

जिनके जेबों मे रहता कानून है।
उनको फर्क नहीं पानी है खून है।
हर विभाग बन गया तवायफ-खाना है।
मुफ्त काम का भी सौदा मनमाना है।
कोई कोयल पॉंव का घुंघरू तोड़ेगी।
उसको गिद्धों की टोली ना छोड़ेगी।
दूर नही बस हाल देख लो कुण्डा का।
यहॉं राज चलता मन्त्री का गुण्डा का।
राष्ट्रद्रोह मे कुछ भी करो आबाद हो।
किये राष्ट्र हित मे फिर तो बर्बाद हो।

फूट पड़ गई है हममें जब काशी और मदीने की।
तो मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।

आओ हम जनगणमन मे विश्वास करें।
अपने अन्दर निहित शक्ति अहसास करें।
बनकर दिनकर तम का जोश मिटा डालें।
अपने मन का कौमी रोष मिटा डालें।
एक हाथ जब अपना दीप जलायेगा।
पूरे भारत मे प्रकाश हो जायेगा।

मन मे दृढ़ संकल्प, बाहुबल, डर क्यों तुम्हे सफीने की।
मजबूरी क्यों खून के आंसू पीने की।

मजबूरी है खून के आंसू पीने की।

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on June 18, 2014 at 7:20am
utsahwardhan hetu sadar dhanyawad
Comment by mrs manjari pandey on March 11, 2013 at 7:15pm

आशीष यादव जी बधाई। सजीव चित्रण।अब येही दर्द सालता है।

Comment by वेदिका on March 10, 2013 at 1:49pm

आशीष जी! ओज पूर्ण विचार है रचना में .... कौमी एकता पर दृष्टिपात किया ... लिखते रहिये।
शुभकामनायें 
सादर वेदिका 

Comment by आशीष यादव on March 10, 2013 at 1:45pm

जिसने देखे स्वप्न राम के राज की।
उसी हिन्द की दशा हुई क्या आज की। ling sambandhi trutiyo se mujhe awgat karaaya gya hai. mai gujaarish karunga ki in panktiyo ko is tarah se padhaa jaay..

जिसने देखे स्वप्न राम के राज के,

जिसकी लाठी चली बिना आवाज के

Comment by ram shiromani pathak on March 10, 2013 at 1:36pm

आओ हम जनगणमन मे विश्वास करें।
अपने अन्दर निहित शक्ति अहसास करें।
बनकर दिनकर तम का जोश मिटा डालें।
अपने मन का कौमी रोष मिटा डालें।
एक हाथ जब अपना दीप जलायेगा।
पूरे भारत मे प्रकाश हो जायेगा।

  रचना के कथ्य बहोत ही बढ़िया है इसके लिए हार्दिक बधाई .....थोडा इस रचना को फिर से पड़कर जाँच ले सब समझ आ जायेगा  !!!बहोत बढ़िया लिखा है अपने भाई आशीष  जी 

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2013 at 1:36pm

आदरणीय आशीष जी,
वर्तमान परिस्थितियों को बहुत अच्छे से पिरोया है आपने। आपका यह प्रयास सराहनीय है।
मजबूरी क्यों खून के आंसू पीने की। यह प्रश्न जायज है लेकिन वास्तविकता यही है कि लोग खून के आंसू पी रहे हैं और मूकदर्शक बने चुपचाप बैठे हैं।

Comment by baban pandey on March 10, 2013 at 1:33pm

सामयिक कविता.. ओजपूर्ण ..लिखते रहिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हम सपरिवार बिलासपुर जा रहे है रविवार रात्रि में लौटने की संभावना है।   "
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर। स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥ जलचर…"
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद *********** हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार। यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार। करती…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service