जिनके लिये हिन्द प्राण से प्यारा था।
सत्य अहिंसा ही बस जिनका नारा था।
तैंतीस कोटि जनो का जो विश्वास था।
जिसमे होता देवों का आभाष था।
जिसने देखे स्वप्न राम के राज की।
उसी हिन्द की दशा हुई क्या आज की।
सत्य बैठ कोने मे सिसकी लेता है।
झूठ हमेशा गीदड़ भभकी देता है।
और अहिंसा बिलख रही लाचार है।
हिंसा उसे नोचने को तैयार है।
सोचें भी तो कैसे हम, ऐसे भारत मे जीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
राशन की रक्षा मे बैठे गिद्ध हैं।
अपना घर भरने मे जो कि सिद्ध हैं।
जो हर दिन ही लाखों-लाख पचाते हैं।
जो देख ले उसकी आँख चबाते हैं।
गौरैया सी सहमी जनता आज है।
जिसके ऊपर बाजों का ही राज है।
ऐसे तन्त्रों का उल्लू सरदार है।
दिवा-अन्ध के कन्धों पर ही भार है।
बिल्ली से डरता है मन मे मौन है।
सभी जानते हैं वो पट्ठा कौन है।
जहॉं कि रोटी भी ना मिल पाती हो खून पसीने की।
तो मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
जिनके जेबों मे रहता कानून है।
उनको फर्क नहीं पानी है खून है।
हर विभाग बन गया तवायफ-खाना है।
मुफ्त काम का भी सौदा मनमाना है।
कोई कोयल पॉंव का घुंघरू तोड़ेगी।
उसको गिद्धों की टोली ना छोड़ेगी।
दूर नही बस हाल देख लो कुण्डा का।
यहॉं राज चलता मन्त्री का गुण्डा का।
राष्ट्रद्रोह मे कुछ भी करो आबाद हो।
किये राष्ट्र हित मे फिर तो बर्बाद हो।
फूट पड़ गई है हममें जब काशी और मदीने की।
तो मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
आओ हम जनगणमन मे विश्वास करें।
अपने अन्दर निहित शक्ति अहसास करें।
बनकर दिनकर तम का जोश मिटा डालें।
अपने मन का कौमी रोष मिटा डालें।
एक हाथ जब अपना दीप जलायेगा।
पूरे भारत मे प्रकाश हो जायेगा।
मन मे दृढ़ संकल्प, बाहुबल, डर क्यों तुम्हे सफीने की।
मजबूरी क्यों खून के आंसू पीने की।
मजबूरी है खून के आंसू पीने की।
Comment
आशीष यादव जी बधाई। सजीव चित्रण।अब येही दर्द सालता है।
आशीष जी! ओज पूर्ण विचार है रचना में .... कौमी एकता पर दृष्टिपात किया ... लिखते रहिये।
शुभकामनायें
सादर वेदिका
जिसने देखे स्वप्न राम के राज की।
उसी हिन्द की दशा हुई क्या आज की। ling sambandhi trutiyo se mujhe awgat karaaya gya hai. mai gujaarish karunga ki in panktiyo ko is tarah se padhaa jaay..
जिसने देखे स्वप्न राम के राज के,
जिसकी लाठी चली बिना आवाज के
आओ हम जनगणमन मे विश्वास करें।
अपने अन्दर निहित शक्ति अहसास करें।
बनकर दिनकर तम का जोश मिटा डालें।
अपने मन का कौमी रोष मिटा डालें।
एक हाथ जब अपना दीप जलायेगा।
पूरे भारत मे प्रकाश हो जायेगा।
रचना के कथ्य बहोत ही बढ़िया है इसके लिए हार्दिक बधाई .....थोडा इस रचना को फिर से पड़कर जाँच ले सब समझ आ जायेगा !!!बहोत बढ़िया लिखा है अपने भाई आशीष जी
आदरणीय आशीष जी,
वर्तमान परिस्थितियों को बहुत अच्छे से पिरोया है आपने। आपका यह प्रयास सराहनीय है।
मजबूरी क्यों खून के आंसू पीने की। यह प्रश्न जायज है लेकिन वास्तविकता यही है कि लोग खून के आंसू पी रहे हैं और मूकदर्शक बने चुपचाप बैठे हैं।
सामयिक कविता.. ओजपूर्ण ..लिखते रहिये
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