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मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया

मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया
उसके सारे चिन्ह खो गये, कैसा ये बदलाव हो गया

नही रही अब गुरु की गुरुता, नही रहे वो शिष्य महान
काट अँगूठा तक दे देते थे करते गुरु का सम्मान
आज के युग में शिक्षा क्या, बस पैसों का व्यापार हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया

नही रही धुन बाँसुरिया की, जो छेड़ा करती थी तान
कहाँ थाप तबले ढोलक की, कहाँ नगाड़े का है मान
आज कान के परदे फट जाते ऐसा संगीत हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया

कहाँ महत्ता त्यौहारों की, कहाँ बचे उद्देश्य महान
होली मे दुश्मनी भुला जब रंगा जाता हिन्दुस्तान
अब रंगो की जगह मद्य मे डुबना ही त्यौहार हो गया
मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया

आशीष यादव

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Comment

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Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 6:01pm

आदरणीय AVINASH S BAGDE जी, आपको रचना पसन्द आई मै धन्य हुआ। सराहना हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद

Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 5:59pm

आदरणीय अरुन शर्मा "अनन्त" जी, सराहना हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद

Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 5:57pm

आदरणीया rajesh kumari  जी, सराहना हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद

Comment by AVINASH S BAGDE on July 27, 2012 at 4:52pm


काट अँगूठा तक दे देते थे करते गुरु का सम्मान

आज के युग में शिक्षा क्या, बस पैसों का व्यापार हो गया

मेरा भारत अपना भारत ना जाने कहाँ खो गया

आशीष यादव JI SATEEK CHOT KI HAI...

 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 12:02pm

आशीष भाई आपके इस जज्बे को मेरा सलाम.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 27, 2012 at 10:50am

बहुत जबरदस्त भाव रचना में बहुत सुन्दर ...वाह 

Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 10:38am

आदरणीय SANDEEP KUMAR PATEL सर, रचना पसन्द आई आपको, मै उर्जस्वित हुआ। बहुत-बहुत धन्यवाद सर।

Comment by Er. Ambarish Srivastava on July 27, 2012 at 10:37am

स्वागत है मित्र !

Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 10:36am

आदरणीय अम्बरीश सर, आपकी सराहना से बल मिला।
बहुत-बहुत धन्यवाद

Comment by आशीष यादव on July 27, 2012 at 10:33am

आदरणीय Ashok Kumar Raktale सर, रचना पसन्द आई आपको मैं धन्य हुआ।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद

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