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पढ़ती हैं विज्ञान को--------!!!

चाँद पर रख दिए हमने कदम
विकास कर रहे हैं हर दम
पहुंचे हैं आज यहाँ हम सदियों में.
पर आज भी पूजा जाता है चाँद
मेरे गांव/शहर की गलियों में ,
और चौथ का व्रत रखती हैं महिलाएं
खुश करने को अपने सुहाग को,
बी. एस.सी करती है पढ़ती हैं विज्ञान को,
पर आज भी दूध पिलाती है नागपंचमी पर नाग को.
चाहे जितना कर लो तुम विकास वो अब भी मिथकों पर है मरती .
उनके लिए आज भी शेष नाग पर टिकी है धरती !!!!!

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 10:38pm

विशद ज्ञान को साझा कर, नवलजी, आपने इस मूढ़ समाज पर बड़ा उपकार किया है. कई-कई ’ज्ञानवानों’ को हमने भी विश्वकर्मा पूजन (सत्तरह सितम्बर) के दिन कम्प्यूटर की पूजा करते देखा है.  इतना ही नहीं, सुना है, परमाणु बम के प्रथम प्रयोग की विंध्वंसक चकाचौंध के समय उपस्थित प्रमुख वैज्ञानिक श्रीमद्भग्वद्गीता में वर्णित भगवान् कृष्ण के वृहद रूप को बखानता श्लोक पढ़ रहे थे. विश्व का सर्वोत्तम मस्तिष्कधारी आइंस्टाइन तक श्रीमद्भग्वद्गीता के श्लोकों से अभिभूत बताये जाते थे.  इतना ही नहीं, अब देखिये न, अति प्रसिद्ध बोसन कण की महानतम खोज में लिप्त विश्व के प्रबुद्धतम वैज्ञानिक उक्त प्रयोगशाला के बाहर नटराज (तांडव मुद्रा में शिव) की मूर्ति प्रतिस्थापित करते हैं.

क्या किया जाये. कुएँ में ही भांग घुली है.   जय कहें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2012 at 9:32pm

चाहे जितना कर लो तुम विकास,
वो अब भी मिथकों पर है मरती |
उनके लिए आज भी,
शेष नाग पर टिकी है धरती |

वाह वाह नवल जी, बहुत खूब, आईना को आपने सामने रख दिया है, शानदार अभिव्यक्ति, प्यारी रचना, बधाई स्वीकार करें |

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 8:40pm

वाह वाह नवल जी बहुत खूब कहा
वैज्ञानिक  विकास के युग  में भी  हमारी पुरातन मान्यताएं तथा परम्पराएं कायम हैं

रहनी भी चाहियें  नवल जी........क्योंकि इन्हीं के दम पर हम  पहचाने  जाते हैं  वर्ना नया हमने ऐसा कौनसा  मिथक कायम किया कि हज़ारों वर्षों तक चल सके....

__अभिनन्दन.........सुन्दर कविता

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