१. मंहगाई
दिल को देती है तन्हाई,
कभी ना होती उसकी भरपाई !
तुम क्या जानों पीर पराई ,
क्यों सखा सजनी, ना सखा मंहगाई !!
२. नेता
वो जब भी आये बलईयाँ लेता ,
सबके हाल पर चुटकी लेता !
रोज नये आश्वासन देता,
क्यों सखी साजन, ना सखी नेता !!
Comment
शुक्रिया राजेश कुमार जी .
आप सभी का शुक्रिया .आप के सुझाव सर माथे पर. कृपया ऐसा स्नेह बनाये रखियेगा ताकि मेरे लेखन में निरंतर सुधर हो सकें.
प्रिय नवल बहुत सुन्दर कह्मुकरियाँ लिखी हैं बस हर पंक्ति में १६ मात्राएँ होनी चाहिए शुरू में हम से भी ये गलती होती थी बहुत अच्छा प्रयास शुभकामनायें
अति सुंदर कह मुकरियां नवल जी ,बधाई
सादर आदरणीय अलबेलाजी.. .
jai ho mahaprabhu ji ki
आदरणीय अलबेला जी ने तो सीधा उपसंहार ही लिख डाला है .. :-)))
अनुज नवलजी, खूब पढ़िये और हृदय लगा कर गुनिये, आपकी रचनाधर्मिता को, देखियेगा, अर्थ मिलता जायेगा.
जय हो.. .
बहुत बहुर धन्यवाद सम्मान्य सूबे सिंह सुजान जी,
सादर
वाह....दिल से निकले...खुद-ब-खुद.....वाह।।
नवल जी ने भी अच्छा लिखा ..किन्तु अलबेला जी आपने वाक्य में बहुत अर्थपूर्ण व मधुर सुधार किया है।।
नवल जी, एक अलग प्रयोग किया है आपने, इस प्रयास पर साधुवाद |
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