चाँद पर रख दिए हमने कदम
विकास कर रहे हैं हर दम
पहुंचे हैं आज यहाँ हम सदियों में.
पर आज भी पूजा जाता है चाँद
मेरे गांव/शहर की गलियों में ,
और चौथ का व्रत रखती हैं महिलाएं
खुश करने को अपने सुहाग को,
बी. एस.सी करती है पढ़ती हैं विज्ञान को,
पर आज भी दूध पिलाती है नागपंचमी पर नाग को.
चाहे जितना कर लो तुम विकास वो अब भी मिथकों पर है मरती .
उनके लिए आज भी शेष नाग पर टिकी है धरती !!!!!
Comment
विचार मंथन की इस प्रक्रिया से मैं अभिभूत हूँ ------रचना का उद्देश्य सार्थक हुआ लगता है.पुनश्च आप सभी का शुक्रिया.
आदरणीय रेखा जी शुक्रिया आपका .स्नेह बनायें रखें .
शुक्रिया आपके इस बयान से गलत फहमी दूर हो गई.
थोडा पढने में उल्टा इसीलिए लगा क्यूंकि मैंने विज्ञान की दृष्टि से लिख दिया था
मैं तो आपके विचारों से सहमत हूँ
आपने बाकई जो पहलू प्रस्तुत किया है वो विज्ञान की दृष्टि से सही नहीं है
इस पंक्ति में स्वीकारोक्ति है साहब
प्रिय संदीप जी रचना पर अपनी प्रतिक्रियाएं देने के लिए आभार .रचना में जो विचार मैंने व्यक्त किये है उनका सम्बन्ध हमारे उस समाज से है जो आज भी आँख बन्द करके परम्पराओं का अन्धानुकरण कर रहे हैं. मैंने यहाँ कुछ ही मिथकों का जिक्र किया है परन्तु आम जीवन में ऐसे अनेकों मिथक आपको मिल जायेगें जिनका कोई सार्थक और वैज्ञानिक औचित्य नहीं है उदहारण के लिए आज भी हमारा समाज सूर्य गृहण और चन्द्र गृहण जैसी खगोलीय और प्राकृतिक घटनाओ को देविय और ईश्वरीय चमत्कार मानकर पूजन करता हैं.आप कृपया बताएं कि मैंने कौनसा ऐसा पहलू प्रस्तुत कियाहै जो आपको वैज्ञानिक दृष्टि से सही नहीं लगा ???
नवल जी ,अति सुंदर प्रस्तुति,मै राजेश जी से पूर्णतया सहमत हूँ ,विज्ञान से रहस्य की बहुत परतें खोली है और आगे नई नई खोजों में लगा हुआ है लेकिन विज्ञान से परेभी एक और विज्ञान है जिससे हम अभी भी अँधेरे में है ,कई प्रशन अभी अनसुलझे है ,विचारणीय रचना ,बधाई
आदरणीय इस रचना में आपका व्यक्तिगत दर्द है या सामाजिक ????
बस यूँ ही पूछ लिया किन्तु आपने बाकई जो पहलू प्रस्तुत किया है वो विज्ञान की दृष्टि से सही नहीं है
किन्तु ये वही विज्ञान है जो आजकल भूत पिशाच पकड़ने के यन्त्र बना रही है
और जब वो पहलू सच हो गया जो दिख ही नहीं रहा है तो फिर ये क्यूँ नहीं ????
संभवतः उनके शेष नाग अभी दिख नहीं रहे हों
विज्ञान का कोई प्रयोग ये भी सिद्ध कर दे की सच में धरती उनके फन पे टिकी है
या ये भी के चाँद सूरज और तारों के बिना जीवन असंभव है या ये भी जीवन में सुख दुःख की तरह अभिन्न अंग है
तो आखिर हुए न ये पूज्यनीय
बहरहाल मेरी बधाई आपकी सम्यक वैज्ञानिक दृष्टि के लिए
जो विज्ञान पढ़ रहे हैं या विज्ञान से सरोकार रखते हैं उन्हें इनके मूल का वास्तविक स्वरूप पता होना चाहिए
सम्मानीय राजेश कुमारी जी, सौरभ जी, गणेश जी एवं अलबेला खत्री जी आप सभी का हृदय से आभार. आपके मूल्यवान कमेंट्स पढ़कर इस तरह के विषयों पर लिखने हेतु और हिम्मत बढ़ेगी मेरी. तहेदिल से शुक्रिया .
बहुत बढ़िया लिखा है प्रिय नवल वैज्ञानिक युग में भी हम पुरातन मान्यताओं को मानते चले आ रहे हैं बहुत सही कहा क्यूंकि हमारे देश में इन मान्यताओं की जड़ें इतनी गहरी हैं जो आसानी से नहीं हिलेंगी पर अंधविश्वास करना भी गलत है भगवान् एक आलौकिक शक्ति के अस्तित्व को भी नकार नहीं सकते पर आस्था के नाम पर ढकोसले करना आडम्बर करना इससे मैं भी असहमत हूँ -------बहुत अच्छी विचारणीय प्रस्तुति
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