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आप सभी मित्रों का ह्रदय से आभारी हूँ कि आपने इसे मान दिया.........!!!
विदेह मन-हृदय के तारों को झंकृत करती इस रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई, विशाल चर्चित भाई. शब्द-शब्द प्रवहमान है. चिर युवा मनस-दशा के अद्भुत व मनोहारी क्षणों का समृद्ध वर्णन हुआ है. आपकी संभवतः पहली रचना पढ़ रहा हूँ. आपका हार्दिक स्वागत है.
शब्द सृजना है या सर्जना .. जरा देखियेगा.
Yogi Saraswat एवं Naval Kishor जी आपका ह्रदय से आभारी हूँ !!!!
अधर से अधरों का मिलना
साँसों से हो सांस का,
हो सभी दुखों का मिटना
और सभी अवसाद का,
आ करें हम ऊर्जा का
एक नया संचार अब.....
क्या बात है विशाल जी , बहुत खूब ! बहुत सुन्दर शब्द और उतने ही सुन्दर भाव
तू रहे ना तू कि मैं ना
मैं रहूँ अब यूं अलग
हो विलय अब तन से तन का
मन से मन का - प्राणों का,
आ कि एक - एक स्वप्न मन का
हो सभी साकार अब.... bhut sunder
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