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प्रेम मोबाइल में अगर,बैलेडिटी विश्वास हो,
नेटवर्क समन्वय हो पुख्ता,हृदय बैट्री चार्ज हो।
प्रतिपक्ष नम्बर रांग हो,एकांत स्पीकर साफ हो,
नहीं समस्या कोई यारोँ,प्रेम पगी तब बात हो॥

घायल नहीं हुआ कभी,जो तीर ओ तलवार से,
वो ही घायल हो गया,तेरे नजर के वार से।
पैदाइश से आज तक,जीत जिसकी हमसफर,
वो ही जीता जा चुका है,आज तेरे प्यार से॥

यार मैं तो रात का,शुक्र गुजार बन गया हूं,
वो बन गये हैं वादक,मैं सितार बन गया हूं।
बेदर्द बड़े प्यार से,बजाते हैं मुझको,
उनकी इस अदा पे,मैं झंकार बन गया हूं॥

जमाना जुल्म ढाये तो,मुझे गम नहीं होगा,
वो रूठ भी जायें,सितम से कम नहीं होगा।
मुस्कराके इक नजर,बस देख ले मुझको,
ये खुदा के इनायत से,कम नहीं होगा॥

इधर आग की दरिया,उधर आब का समंदर है,
दोनों ही तरफ विन्ध्येश्वरी मौत का मंजर है।
हालात बड़े नाजुक हैं,कहो क्या करें,
सोचता हूं खामोश,खड़े रहना ही बेहतर है॥

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Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 7:14pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी रचना की सराहना के लिये हार्दिक आभार।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 31, 2012 at 7:12pm
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी!लेकिन मेरी क्या बिसात हुजूर की में बेड़ा पार करूं ये तो करतार ही कर सकता है।
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 2:57pm

सभी मुक्तक अच्छे लिखे हैं बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 31, 2012 at 11:51am

मुस्कराके इक नजर,बस देख ले मुझको, ये खुदा के इनायत से,कम नहीं होगा॥

बहुत प्रभावपूर्ण रचना के लिए बधाई श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीजी -
मुस्कराके एक नजर, देख ली तेरी तस्वीर,
अब तो इनायत बक्शों,बनजाय मेरी तक़दीर--लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

 

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